Book Title: Jinshasan na Zalhlta Nakshatro Part 02
Author(s): Nandlal B Devluk
Publisher: Arihant Prakashan

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Page 614
________________ ૧૨૩૦ શાહ (ગુરુજી) વિવિધ ધર્માનુષ્ઠાનો દ્વારા પ્રસંગે પ્રસંગે સમુદાયને ભાવવિભોર કરી દેતા હોય છે. શ્રાવક વિશિષ્ટ વિધિકારક શ્રી સુરેન્દ્રભાઈ સી. बादशाही, दोपहर ३०० बजे प्रवचन बहुमान साध्वीजी भगवंत की वाचना सायंकुमारपाल महाराजा की आरति बादशाही ठाठ, रात्रि भक्ति भावना बस अब तो चला संघ का दैनिक नित्यक्रम एक एक दिन कटता गया । प्रथम दिन रोही शाला दूसरे दिन जीवापुर तीसरे दिन मंगल प्रवेश पालीताणा एवं मालारोपण दैनिक कार्यक्रमानुसार प्रातः ५-०० बजे प्रयाण कर बराबर गिरीराज की जय जयकारों के साथ ६०० बजे साचा सुमतिनाथ दादा के दर्शन कर संघ एवं संघवीजी परिवार आणंदजी क्याणजी पेढी पहुंचे पेढी द्वारा अपूर्व स्वागत किया गया साफा में शोभते संघवी एवं मैसूरी पाडी में यात्रिक एवं पीले खेतों से शोभते सभी यात्रिकों के साथ शोभायात्रा का नजारा कुछ ओर ही था। संघ पूजा करके गिरीराज की यात्रा हेतु शोभायात्रा प्रारंभ हुई। यह नजरा अपूर्व था, लोगोंने कहा, प्रातः इतना जल्दी ऐसा वरघोडा ऐसा सुंदर नजारा यहाँ कभी नहीं देखा, युवानों के नृत्य, सभी का हर्षोल्लास अपूर्व था। बेंगलोर आराधना भवन में संघवी परिवार का सम्मान किया गया। तलेटी चैत्यवंदन कर शहनाइओं के साथ जय जयकार कर गिरीराज की यात्रा करते दादा के दरबार पहुँचे। प्रातः ९ से १० -३० तक अपूर्व उल्लास के साथ संघमाला का कार्यक्रम हुआ। संघवी परिवार द्वारा दादा की ध्वजा चढानेका रोमांचक कार्यक्रम सभी ने देखा । दादा की ध्वजा का अपूर्व अनोखा प्रसंग कईओं के लिए प्रथम ही था, खूब अनुमोदना हुई सब कह रहे थे वाह भाई वाह !! क्या संघ !! क्या उदारता !! क्या आनंद!! दादा का पक्षाल पूजा कर सब घेटीपाग उतरे वहाँ कार्यकर्ताओं द्वारा धीरुभाई के निर्देशन में सभी का दुध से चरण पक्षालन गुलाबजल छांटणा तिलक प्रभावना आदि दृश्य ने कईओं की आँखे गिली बनाई । उतरकर ६ किलोमिटर चलने पर भी यात्रिक प्रसन्न थे। प्रतिदिन संघ का ऐसा कार्यक्रम था । प्रातः ३-३० बजे शहनाई की सुरावली के साथ जागरण नित्यकर्म निपटकर प्रातः ३-४५-१ १ से ४-४५ प्रतिक्रमण १०० पुरुषों का प्रातः खडे खडे प्रतिक्रमण प्रातः ५०० बजे मंदिरजी में प्रवेश चैत्यवंदन, भक्तामर अरिहंत वंदनावली मंत्राक्षरों की धून। प्रातः ५-३० बजे गुरुवंदन, मांगलिक संघ प्रयाण पूरे संघ में जयजयकार भक्ति की धून, अनुकंपादान प्रातः ८०० बजे संघ का मुकाम पर पहुँचना प्रभुजी का एवं गुरुभगवंतों का सामैया मांगलिक संघ पूजा प्रातः ९०० बजे से २०० बजे तक परमात्मा पूजा भव्य स्नात्र महोत्सव, विविध पूजन दोपहर १२ बजे से २-३० बजे तक एकासण दोपहर ३ बजे प्रवचन, बहुमान कार्यक्रम ४ से ४ १५ तक प्रश्न माला भरना एवं पुरस्कार सायं ४-४५ बजे से ५-४५ बजे साध्वीजी भगवंत की वाचना सायं ६ बजे से ७ बजे तक कुमारपाल महाराजा की भव्य आरती दीपकों की सजावट भव्य आंगी, रंगोली, नृत्य ७ से ८-१५ सामुहिक प्रतिक्रमण ८-१५ से १ बजे तक यात्रिको द्वारा टेन्ट बधामणा वैयावच्च सुखशाता पृच्छा ८-३० से ९-३० बजे संगीतमय प्रभु भक्ति ९-३० से १० तक तत्त्वचर्चा एवं शयन इस प्रकार कार्यक्रमों से पूरा दिन कैसे बीत जाता था, पता ही नहीं लगता था........ प्रतिदिन दूर दूर से विशिष्ट व्यक्ति संघ दर्शन एवं अपूर्व नजारा देखने आते, सभी का बादशाही बहुमान किया जाता। शाम को हजारों की संख्या दर्शन हेतु आती सभी को मीठाई पेकेट की प्रभावना की जाती। सभी रंग गये भक्ति के रंग में.... अब न तो किसीको कुछ कहना पडता था, १८-१८ किलो मिटर चलने पर भी सभी की थकान दूर.. हर मुकाम पर किशान / खेत मालिकों का / सरपंच आदि का बादशाही सम्मान.... केशुभाई बेडेवाला का धनगनता नया नया नृत्य कमलभाई पार्टी, नरेन्द्र वाणीगोता, दशरथभाई जोशी, आदि संगीतकारों की समय समय अपूर्व भक्ति रस के रमझट लब्धिग्रुप एवं कार्यकर्ताओं द्वारा स्नेह भरी अपूर्व भक्ति रात को भी संघवी एवं कार्यकर्ताओं द्वारा सुखशाता . Jain Education International पृच्छा एवं वैयावच्च । १४- १४ संघ में गये यात्रिकों का कहना था यह संघ शिरमीर हैं, कार्यकर्ताओं की सौजन्यता विनम्रता, वैयावच्च, भक्ति तनतोड मेहनत सभी के दिल को छु जाती छोटे छोटे इन बालक बालिकाओं के मुह पर थकान की एक रेखा भी नहीं... रास्ते में बीना मोजा बुट, चप्पल बिना चलते यात्रिकों का अभिवादन संघ पूजा. कई कई जगह यात्रिकों को कुंकुम पगला एवं गाल पर कुंकुम लगाकर बधाई । संघ में पढाये पूजन १०८ पार्श्वनाथ महापूजन अष्टापद महापूजन प्रभु वंदनावली अरिहंत वंदनावली महापूजन रत्नाकर पच्चीसी महापूजन १०८ पार्श्व पूजन भाग १ १०८ पार्श्व पूजन भाग- २ १०८ पार्श्व पूजन भाग ३ नंदीश्वर द्वीप महापूजन नेमिनाथ अम्बिका महापूजन अष्टमंगल महापूजन तीर्थ वंदना गिरनार तीर्थ वंदनावली कल्याण मंदिर महापूजन | १७० जिन महापूजन ॠषभनी शोभा शी कहुँ श्री शत्रुंजय भावयात्रा तीर्थ माला कार्यक्रम · जहाँ देखो वहाँ गुरुजी सुबह ४-३० बजे प्रतिक्रमण करत एवं प्रभावना देते गुरुजी प्रातः ५ बजे मंडप में भक्तामर पाठ एवं भक्ति की धून मचाते गुरुजी पूरे संघ में पैदल चलते एवं जयजयकार करते गुरुजी पाँच पाँच घंटो तक भक्ति में मन बनाते गुरुजी भोजन के समय सब की मीठाई खीलाकर भक्ति करते गुरुजी प्रवचन मंडप में जाहिरात एवं अनुमोदना करते गुरुजी જિન શાસનનાં कुमारपाल आरति में सब को नचाते जोडते गुरुजी साधु साध्वी एवं यात्रिकों को सुखशाता पूछते उत्साह बढाते गुरुजी कार्यकर्ताओं को मार्गदर्शन देते गुरुजी सुबह संघ में अनुकंपादान देते प्रेरक गुरुजी छोटे छोटे बच्चों को चामर नृत्य कराकर इनाम देते गुरुजी संघ की प्रत्येक व्यवस्था में लगे गुरुजी सभी को साथ लेकर सब से पीछे रहते गुरुजी - देखते देखते बीत गये दिन १५, अब तो गिरनार तीर्थ नजरों के सामने था सभी नाच रहे थे, गिरीराज को बधा रहे थे। शाम को गिरी वधामण का ऐतिहासिक प्रसंग भी हुआ। ता. २८-१२-२००८ को कच्छी भवन से स्वागत शोभा यात्रा प्रारंभ हुई मिलन बेन्ड के विशाल पार्टी, पीले खेश में शोभते यात्रिक, जय गिरनार की गुंज प्रातः ८-०० बजे जुनागढ में मंगल प्रवेश, तलेटी मंदिर पूजा भव्य स्नात्र आरति आदि ता. २९-१२-२००८ प्रातः ५ बजे गिरनार की हर्षोल्लास के साथ यात्रा प्रारंभ, जय जयकारों के साथ प्रातः ६-३० बजे यात्रि पहुँचे नेमिनाथ दरबार !!! स्तुति, भक्तामर की रमझट के साथ एक घंटा भक्ति की धून पक्षात पूजा आदि की रेकार्ड बोली, ध्वजा चढाने का मनभावन प्रसंग, तीन प्रदक्षिणा में सभी ने ध्वजा स्पर्श अपूर्व माहोल था ध्वजा चढाने का । संघ की यह थी विशेषता.. नहीं कोई विशिष्ट बहुमान पा टीकट का भी प्रलोभन... फिर भी ६५० यात्रिक, सभी पादचारी, एकस आहारी आवश्यककारी भूमि संपारी, प्रत्येक कार्यक्रमों भी सभी यात्रिक एवं आयोजकों की उपस्थिति। फिर भी न पकावट एवं चित्त प्रसन्नता । भोजन के समय संघपतिओं एवं कायकर्ताओं द्वारा रसवतीओं से बहुमान पूर्वक भक्ति संघवणों की पंखा चलाते गीतगाते भक्ति.... टेन्ट सजावट, गहुँली स्पर्धा, प्रत्येक दिन प्रश्नमाता जय भावयात्रा, शोभा शीं कहुँ रिषभ की आदि विशिष्ठ कार्यक्रम । For Private & Personal Use Only की उदघोषणा की ५ लाख में लाभ लेने हेतु मधुबेन चोपालाल परिवार सुरेन्द्र गुरुजी ने तीर्थ रक्षा हेतु गिरनार की नव्वाणुं यात्रा शा भंवरलाल हस्तीमलजी रांका शा जयन्तिलालजी गंभीरमलजी बाफणा शा जीवराजजी गणेशमतजी ओस्तवाल शा हस्तीमलजी भंडारी शा उगमराजजी फुलपगर सुशीलाबेन धर्मीचंदजी रांका मद्दुर अनेक परिवारों ने अपना नाम लिखा दिया, नव्वाणुं यात्रा हेतु यात्रिकों का नाम www.jainelibrary.org

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