Book Title: Jinbhaktimay Vividh Gey Rachnao
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ 22 अनुसन्धान ३३ माह वदि तेरसि उज्जल - नियजसि पुव्वलक्ख चुलसीय - जू (जु)य । जय पढमजिणेसर ! सू(सु) अभरहेसर !, करि पसाउ निम्मलचरी (रि) य ॥५॥ ॥ इति श्रीआदिनाथस्तोत्रम् ॥ श्रीशान्तिनाथस्तोत्रम् ॥ वीससेण- अइरादेविनंदण ! तणुहरण ! जय अपुव्वहरिणंक- अखंडियतणुकिरण ! । सिरिसिरिसेण - कुरुनर - सोहम्म- खयरनिवपाणय- सो अपराजी (जि) य - अच्चुयइंदभव ! ||१|| विज्जाहिव गेविज्ज-नरवइमेहरह सव्व अवयन्नउ गयउर संतियह भाद्रवए वदि- सातमि सामी चवण तुह जि- कसिण - तेरसि-निसि जायउ जम्भमहो ॥२॥ जिट्ठ - चउद्दसि - बहुलीय संजमसिरि वरीय पोस - सुदि - नउमि - दिणि केवलवरि वरीय । जि - कसिण - तेरसिनिसि कंचणकंतितणु मुक्खसुक्ख पहु पामीय छंडिय कम्मवण ॥३॥ चउसट्ठि सहस - अंतर चुलसीयलक्खयहय-गय- रहवर छन्नवइकोडि - पायक तह य । नवनिहि चऊदरयण छक्खंड - सभूमिवर धम्मचक्क सोलसमु पंचम चक्कर ||४|| चालीसधणुहदेहो, लक्खं वरिसाण जीवियं जस्स । सो संतिनाहदेवो, करेइ संघस्स सिवसंती ॥५॥ ॥ इति श्री शान्तिनाथस्तोत्रम् ॥ श्रीनेमिनाथ स्तोत्रम् ॥ पंचजन्त्रि - आउरिय-संख जिणि दिगह अज्ज वि जसु पय सेवइ लंछणमिसि जिणह 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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