Book Title: Jinbhaktimay Vividh Gey Rachnao Author(s): Kalyankirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 8
________________ September-2005 27 (3) श्रीरामविजयजीकृत - विविधनामगुम्फित-श्रीजिनस्तवना अथ जिनस्तवना लिख्यते // मुंनिध्येय नमो, सुरगेय नमो, पतितपावन सुचिनांम नमो / चिंतितसकलमनोरथपूरण, कल्पतरुपरिणाम नमो मुं० // 1 // जिन मुंनी(नि)नाथ जिनेस्वर संकर, परमातम अरिहंत नमो / पारंगत परिमेष्ठि अधि(धी)स्वर, भयभंजण भगवंत नमो |मुं० // 2 // संभु स्वयंभु जगतप्रभु अभयद, वि(वी)तराग गुंणसिंधु नमो / बोधदायक त्रिहुंकाल के ग्यायक, असरण-सरण सुबंधु नमो |मुं० // 3|| केवलकमलाकंत महोदय, सिद्ध बुद्ध सर्वज्ञ नमो / ति(ती)र्थंकर ति(ती)थेस्वर ईश्वर, पुरुषोत्तम परमज्ञ नमो ||मुं० [|4|| आसअनंत अचिंतगुणाकर, निरमोहि-अविकार नमो / पूर्णानंद सयंबुद्ध साहिब, योगीसर जी(जि)तमार नमो ||मुं० ||5|| लोकालोकप्रकासक भासक, आनंदघन अविनास नमो। देवाधिदेव एक सरण तेरो, क्षायकभाव-विलास नमो मुं० // 6 // ईत्यादिक सुभनाम के धारक, करु प्रणिपति त्रिहुं काल नमो / रांम कहें तेरा सेवक उपर, करुणा दि(दी)नदयाल नमो |मुं० [7|| // इति श्रीजिनस्तुति // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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