Book Title: Jinanam Panchkalayanakani
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 10
________________ जुलाई-२००७ रचि अगर चंदन प्रमुख परिमल दर्भ जिन जयकारीयौ पद पतित अगनिकुमार मुगटानिलसु विधि संस्कारीओ / निर्वाण कल्याणक सुमहिमा सुनत सब सुख पाईई त्रैलोक्यनाथ सुदेव जिनवर जगतमंगल गाईए // 6 // ते मतिहीन भगतिवसु भावना भाईए मंगलगीत प्रबंधसु जिनगुन गाईए / जे नर सुनए बखांन सुर मधुर गावही मनवंछित फल सो निश्चय पावही / / 7 / / पावहीं अष्टौसिद्धि नवनिधि मन प्रतीति जो आंनही भ्रमभाव छूटे सकल मनके जिनस्वरूप सुना नहीं / फुनि टरहि पातक हरहि बिघन जुं वरहि मंगल नित नयौ भनें रूपचंद सुदेव जिनवर देव चउसंघहि जयौ / / 8 / / इति श्री जिनानां पंचकल्याणकानि / / // लि / मुनि सरुपचंद गणिना मु / नेमसागर पठनार्थं / / बुधवासरे / सं. 1868 ज्येष्ट वदि अमवास्यां / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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