Book Title: Jin Pratima ka Prachin Swarup Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_6_001689.pdf View full book textPage 1
________________ जिनप्रतिमा का प्राचीन स्वरूप एक समीक्षात्मक चिन्तन 'जिनभाषित' मई २००३ के अंक में 'दिगम्बरों की जिन प्रतिमा की पहचान के प्रमाण' नामक सम्पादकीय आलेख के साथ-साथ डॉ. नीरज जैन का लेख 'दिगम्बर प्रतिमा का स्वरूप : स्पष्टीकरण' तथा 'दिगम्बर प्रतिमा का स्वरूप : स्पष्टीकरण की समीक्षा' के रूप में पण्डित मूलचंद जी लुहाड़िया के लेख देखने को मिले। उक्त तीनों ही आलेखों के पढ़ने से ऐसा लगता है कि ऐतिहासिक सत्यों और उनके साक्ष्यों को एक ओर रखकर केवल साम्प्रदायिक आग्रहों से ही हम तथ्यों को समझने का प्रयत्न करते हैं। यह तथ्य न केवल इन आलेखों से सिद्ध होता है अपितु उनमें जिन श्वेताम्बर आचार्यों और उनके ग्रन्थों के सन्दर्भ दिये गये हैं, उससे भी यही सिद्ध होता है । पुन: किसी प्राचीन स्थिति की पुष्टि या खण्डन के लिए जो प्रमाण दिये जाएं उनके सम्बन्ध में यह स्पष्ट होना चाहिए कि समकालिक या निकट पश्चात्कालीन प्रमाण ही ठोस होते हैं। प्राचीन प्रमाणों की उपेक्षा कर परवर्ती कालीन प्रमाण देना या पुरातात्त्विक प्रमाणों की उपेक्षा कर परवर्ती साहित्यिक प्रमाणों को सत्य मान लेना सम्यक् प्रवृत्ति नहीं हैं। आदरणीय नीरज जी, लुहाड़िया जी एवं डॉ. रतनचन्द्र जी जैन विद्या के गम्भीर विद्वान हैं। उनमें भी नीरज जी तो जैन पुरातत्त्व के भी तलस्पर्शी विद्वान हैं। उनके द्वारा प्राचीन प्रमाणों की उपेक्षा हो, ऐसा विश्वास भी नहीं होता। ये लेख निश्चय ही साम्प्रदायिक विवादों से उपजी उनकी चिंताओं को ही उजागर करते हैं । वस्तुतः वर्तमान में मंदिर एवं मूर्तियों के स्वामित्व के जो विवाद गहराते जा रहे हैं, वही इन लेखों का कारण हैं । किन्तु हम इनके कारण सत्य से मुख नहीं मोड़ सकते। इन लेखों में जो प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं, उन्हें पूर्वकालीन स्थिति में कितना प्रामाणिक माना जाये, यह एक विचारणीय मुद्दा है। सबसे पहले उनकी प्रामाणिकता की ही समीक्षा करना आवश्यक हैं। यहाँ मैं जो भी चर्चा करना चाहूँगा वह विशुद्ध रूप से जैन संस्कृति के इतिहास की दृष्टि से करना चाहूँगा । यहाँ मेरा किसी परम्परा विशेष को पुष्ट करने या खण्डित करने का कोई अभिप्राय नहीं है । मेरा मुख्य अभिप्राय केवल जिन प्रतिमा के स्वरूप के सन्दर्भ में ऐतिहासिक सत्यों को उजागर करना है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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