Book Title: Jeevvichar
Author(s): J R Shah
Publisher: J R Shah
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Date
न होपाथी, उर्भप थाय छे. न्यारे,षीनुषा, डाणा शमीने , नगृतिपूर्वक, नीये मेने यासवां छतां पए,मलाताभां हाय होडि डीडी भरी नय, तो पए, मल्प...र्भपघाय छे. कारण डे, ध्यभा परिणाम तथा प्रयत्न तो नुषध्या पाणवानो न छ. शुल-नशुल उर्मबंध मुज्य डारए- बाह्य प्रवृत्ति नधी, परंतु, शांतरित परिणामो छे. तेथी, ने राज्यजने तो, मापी पार प्रवृत्ति + सांतरित परिहती , जनेने जाडपा नहे. तेची भोर भाणे १३रथी विकास साधी राहारो. धर्म संयोगे, माह प्रवृत्ति हाय अगाडपी पडे, त्यारे पहले सांतरित परिहातिने माया न मे तो , भीषु भार्गे सापणी पिहासयाना, धीरे-धीरे डरीने पायालुन रहेशे. सतत जुषध्यानां परिणामोथी ध्य लापित इरपानो मा मोटो साल योपीसे हुला भाटे आप मेणवीशडी.
जव + अनुपना सभानाडामर्थी शटो : • नव = मात्मा : येतन = प्राएगी
• सप - सनात्मा = सयेतन = 85 कि मनी प्याघ्या : नीये सापेल 'जय' नी व्याघ्याची
विरुद्ध तमाम व्यायामो अनुष भाटे समनलेवी.
अयनां नहा-दुध नाभीना साधारे दुही-कुही प्याघ्यायो: । न्नयन नवे तेने 'लव' हेवाय. • यतन : नानां येतना होय तेने येतन' हेवाय.
(हा.त. रेखलने हृयोडो भारवा छतांय यीसन पाडे. द्वारा, तेनामां येतना नयी. न्यारे सापाने सहे। याणे तो पए मापो यीस पाडीयो. डारण, मापामां
यैतन्य येतना) छे.) • प्राट्री : नानां प्राए होय तेने प्रष्टी ध्याय. प्रश्नः प्रागाने धारणा रनारना आधारे मापो 'प्राली' नी व्याघ्या तो
डरी , परं, घरेनर "प्राणा' मेरो \?

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