Book Title: Jamikand aur Bahubij Author(s): Nandighoshvijay Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf View full book textPage 2
________________ अनंतकाय अर्थात् उसमें अनंत आत्मायें होती है । अतः उसका शास्त्र में स्पष्ट रूप से निषेध किया न होने पर भी उसका भक्षण नहीं किया जा सकता है क्योंकि उसका भोजन करने से अनंत जीवों की हिंसा का पाप लगता है । सामान्यतः बहुत सी वनस्पतियों की जड़ों के विकार (Modification of Root ) जिसको लोग जमीकन्द कहते हैं, वह अनंतकाय होने से उसका भक्षण न करने का नियम लिया जाता है किन्तु जमीन में होने वाली सभी वनस्पति अनंतकाय नहीं होती है । उदा. मूँगफली । मूँगफली के ऊपर के छिलके तंतुयुक्त होते हैं, उसका प्रत्येक अंग नया पौधा पैदा कर सकता नहीं है और उसमें अनंतकाय के कोई भी लक्षण मौजूद नहीं हैं। उसी तरह सभी वनस्पति के बाहर के आये हुए अंग तना, फूल, फल व पत्र आदि प्रत्येक वनस्पतिकाय नहीं होते हैं । अतः वह जमीन के बाहर होने पर भी अभक्ष्य ही है | डॉ. नंदलाल जैन : आचारांग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कंध में लहसुन का पाठ आता है उसका क्या समाधान ? मुनि नंदीघोषविजय : वह पाठ मैंने भी पढा है । उसमें और श्री दशवैकालिक सूत्र में साधु को गौचरी में क्या कल्प्य है और क्या अकल्प्य है इसके बारे में स्पष्ट निर्देश किया गया है । उसमें स्पष्ट रूप से बताया है I कि साधु को प्रासूक आहार व पानी कल्प्य है । यहाँ प्रासुक शब्द बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । प्रासुक का अर्थ क्या ? डॉ. नंदलाल जैन : प्रासुक अर्थात् निर्जीव और कोई भी वनस्पति या धान्य अग्नि से पक जाने बाद निर्जीव हो जाता है तो आलू, प्याज, लहसुन आदि रसोई के दौरान निर्जीव हो जाने के बाद क्यों नहीं खाया जाय ? मुनि नंदीघोषविजय : प्रासुक अर्थात् निर्जीव तो सही किन्तु सिर्फ होने से वह भक्ष्य नहीं हो जाता है । वह निर्दोष भी होना चाहिये । डॉ. नंदलाल जैन : निर्दोष का मतलब क्या ? मुनि नंदीघोषविजय : प्रासुक अर्थात् विशेषतः अपने ही लिय वह निर्जीव किया गया न हो । आलू, प्याज, लहसुन आदि पकाने के बाद या आलू की चिप्स सुखाने के बाद निर्जीव होने के बावजूद भी वह निर्दोष नहीं है । डॉ. नंदलाल जैन : कैसे ? Jain Education International 73 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7