Book Title: Jamikand aur Bahubij Author(s): Nandighoshvijay Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf View full book textPage 5
________________ | रह सकते हैं | उसे मिट्टी से बाहर निकालने पर उनकी मृत्यु हो जायेगी और वे सड़ने लगेंगे। मनि नंदीघोषविजय : जो ऐसा मानते हैं उनकी यह मान्यता बिल्कुल असत्य है । उसे निर्जीव करने का सिर्फ एक ही उपाय है । छरी आदि से काट कर अग्नि से पकाना । दूसरी बात सजीव पदार्थ में से उसकी आत्मा निकल जाने के बाद अर्थात् मृत्यु हो जाने के बाद उसमे सड़न हो ही जाती है ऐसा कोई नियम नहीं है । आधुनिक युग में और प्राचीन काल में मृतका को लम्बे समय तक रखने के लिये शुष्कीकरण की पद्धति का प्रयोग किया जाता था । वैसे जमीकन्द को सुखाकर रख दिया जाय तो उसमें सडन होने की कोई संभावना नहीं रहती । उदा. अदरक में से सूंठ । ___ डॉ. नंदलाल जैन : यदि हम जमीकन्द नहीं खाते तो सूंठ , हल्दी क्यों ली जाती है ? __ मुनि नंदीघोषविजय : अदरक, हल्दी हरे होते हैं तब अनंतकाय होते किन्तु वे अपने आप सूख जाने के बाद अनंतकाय नहीं रह पाते हैं सूर्यप्रकाश में वे स्वयमेव सूख जाते हैं । उसके लिये छुरी से उसके टुकर करने नहीं पड़ते हैं। दूसरी बात सुंठ, हल्दी औषध हैं । बहुत ही अल मात्रा में सारे दिन में शायद ही एक-आध चमच उसका उपयोग किया जात है । जबकि आलू खुराक है । केवल एक ही व्यक्ति शेर-देढ शेर खा जात है । अतः प्राचीन आचार्यों द्वारा सुंठ, हल्दी आचीर्ण है । जबकि आलू आदि की चिप्स अनाचीर्ण है । अतः उसका उपयोग नहीं करना चाहिये । डॉ. नंदलाल जैन : जमींकम्द से भिन्न वनस्पति में कीड़ा, ढोला, पिल आदि पाये जाते हैं । जबकि जमीकन्द को काटने पर वे अंदर से साप सुथरे दिखाई पड़ते हैं | __मुनि नंदीघोषविजय : शास्त्रकारों ने अनंतकाय की यही पहचान दी है। अनंतकाय के टुकड़े करने पर उसके व्यवस्थित सप्रमाण टुकड़े होते हैं। उसमें रेषा, ग्रंथि आदि नहीं दिखाई पड़ते हैं, तथापि उसमें सूक्ष्म जीव तो। ही । डॉ. नंदलाल जैन : आलू का नाम अपने प्राचीन शास्त्रों में कहीं नह | पाया जाता है क्योंकि आलू भारत की पैदाइश नहीं है । सर वॉल्टर रया ई. स. 1586 में उसे दक्षिण अमरिका (ब्राजिल) से विलायत ले आये बार 76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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