Book Title: Jamikand aur Bahubij
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf

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Page 1
________________ 14 जमीकन्द और बहुबीज आजकल जैन समाज में बहुत से लोग पूछते हैं कि जमीकंद क्यों नहीं खाया जा सकता है ? उसके बारे में बार बार प्रश्न पूछते हैं और सब अपनी अपनी बुद्धि व क्षयोपशम के अनुसार प्रत्युत्तर देते हैं तथापि लोगों को संतोष नहीं होता है । प्रायः तीन चार साल पहले रीवा (मध्यप्रदेश ) महाविद्यालय के रसायणशास्त्र के प्राध्यापक (प्रोफेसर ) विज्ञानी डॉ. नंदलाल जैन मेरे पास आये थे । उन्होंने भी मुझे जमींकन्द के बारे में प्रश्न पूछे थे । उनके साथ निम्नोक्त बात हुई थी |--- डॉ. नंदलाल जैन : कौन से जैनग्रंथ में कितने साल पहले लिखा गया है कि आलू नहीं खाना चाहिये ? उसका निषेध करने का कारण क्या है ? मुनि नंदीघोषविजय : किसी भी जैनग्रंथ व आगम में जमीकन्द नहीं खाना चाहिये ऐसा कोई प्रमाण प्राप्त नहीं है । जैनग्रंथ व आगम में सिर्फ | वनस्पतिकाय के प्रकार बताये गये हैं । 1. प्रत्येक वनस्पतिकाय और 2. साधारण वनस्पतिकाय । साधारण वनस्पतिकाय को अनंतकाय भी कहते हैं। जैस शास्त्रों में साधारण वनस्पतिकाय / अनंतकाय के लक्षण बताये गये हैं । | और उसके कुछेक उस समय में प्रचलित उदाहरण स्वरूप वनस्पति के नाम बताये गये हैं । अतः शास्त्र में सभी प्रकार के अनंतकाय के नाम होने ही चाहिये ऐसा आग्रह रखना या शास्त्र में निर्दिष्ट अनंतकाय का ही निषेध: करना और उससे भिन्न अनंतकाय को भक्ष्य मानना उचित नहीं है । डॉ. नंदलाल जैन : जमीकन्द में अनंत जीव हों तो सूक्ष्मदर्शक में अवश्य दिखाई देते । उदा. दही में बेक्टेरिया आदि । मुनि नंदीघोषविजय : बेक्टेरिया आदि बेइन्द्रिय जीव होने से वे दही से भिन्न हैं । अतः वे सूक्ष्मदर्शक में दिखाई पड़ते हैं । जबकि साधारण वनस्पतिकाय स्वयं सजीव हैं । अतः उसमें सूक्ष्मदर्शक यंत्र से जीव आत्मा को भिन्न रूप से देखने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता है । क्या आत्मा शरीर से भिन्न देखी जा सकती है ? Jain Education International 72 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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