Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Vimla Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 172
________________ १६८ जैनधर्म की कहानियाँ मोक्षसुख का वर्णन मोक्षसुख के समान अन्य कोई भी सुख नहीं है और निश्चयरत्नत्रय से परिणत आत्मा ही मोक्षमार्ग है अर्थात् मोक्ष का कारण है। शुक्लध्यान के बल से चार घातिया कर्मों का नाश करके जो अनंत चतुष्टय युक्त श्री अरहंत परमेष्ठी सकल सिद्धान्तों के प्रकाशक हैं, वे सिद्ध परमात्मा को सिद्ध परमेष्ठी कहते हैं, उन्हें सिद्धि के इच्छुक संत साधु पुरुष सदा ध्याते हैं। वे केवलज्ञानादि अनंत गुणों को धारण करने से महान अर्थात् सबसे बड़े हैं। ज्ञानावरणादि आठों कर्मों से, मोह-राग-द्वेषादि भावकर्मों से एवं शरीरादि नोकर्मों से भी वे रहित हैं तथा सम्यक्त्वादि आठ गुणों से सहित हैं। क्षायिक सम्यक्त्व, केवलज्ञान, केवलदर्शन, अनंतवीर्य, सूक्ष्मत्व अवगाहनत्व, अगुरुलघुत्व और अव्याबाधत्व - इन आठ गुणों से मंडित हैं। उन्होंने विशुद्ध ज्ञान-दर्शन स्वभावी आत्मद्रव्य के आश्रय से उत्यत्र वीतरागी चारित्र से विपरीत आर्त-रौद्र आदि का ध्यान और शुभ-अशुभ कर्मों का, स्वसंवेदनज्ञान रूप शुक्लध्यान से क्षय करके अक्षय पद पा लिया है। सहज शुद्ध परमानंदमय एक अखण्ड स्वभाव के आश्रय से उत्पन्न हुआ आत्मिक अनंत अव्याबाध, अविनाशी, अतीन्द्रिय सुख है, वह अविच्छिन्न है। जो केवलज्ञान, केवलदर्शनरूप सूर्य से सकल लोकालोक के त्रिकालवर्ती अनंत द्रव्य-गुण-पर्यायों को युगपत् प्रत्यक्ष जानते हैं, जो चारों गतियों के अभाव के कारण संसार-परिभ्रमण से रहित हैं तथा लोक के अग्रभाग में ही जिनका सदा निवास है - ऐसे कार्यपरमात्मारूप श्री जम्बूस्वामी भगवान सिद्ध परमात्मा बन गये। हो आयु क्षय से शेष सब ही कर्म प्रकृति विनाश रे। सत्वर समय में पहुँचते अरहन्त प्रभु लोकाग्र रे॥ बिन कर्म परम विशुद्ध जन्म जरा मरण से हीन हैं। ज्ञानादि बार स्वभावमय, अक्षय अछेद अछीन हैं। दुःख-सुख इन्द्रिय नहीं जहाँ, नहिं और बाधा है नहीं। नहिं जन्म है नहिं मरण है, निर्वाण जानो रे वहीं॥ इन्द्रिय जहाँ नहिं मोह नहि, उपसर्ग विस्मय भी नहीं।

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