Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Vimla Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 177
________________ श्री जम्बूस्वामी चरित्र १७३ (८) स्त्री परीषहजय जैसे शेरों में भी प्रधान केहरि शेर अपने से हीन शेर एवं हिरणादि को पकड़ लेते हैं। जैसे सर्प को पैर में दबा लेने वाले महायोद्धा, जिनकी जरा सी नजर टेढ़ी हो तो करोड़ों शूरवीर दीन होकर उनकी शरण ग्रहण करने लग जाते हैं। उसी प्रकार महाबलवान पर्वत एवं कोटिशिला आदि को उठाकर चूर-चूर कर देते हैं, परन्तु ऐसे शूरवीर भी स्त्री के अधीन हो जाते हैं, परन्तु मोक्ष के साधक शूरवीर मुनीन्द्र सुमेरु के समान अकंप रहते हैं। उनका मन - सुमेरु जरा भी डिगता नहीं है। उन्हें मेरा नमस्कार हो । ( ९ ) चर्या परीषहजय बड़े-बड़े चक्रवर्ती, राजा-महाराजा, जो कि रथों में, विमानों में, पालकियों में चलते हैं, वे जब मुनि तनते हैं, तब चार हाथ भूमि देखकर कठोर कंकड़, काँटों आदि वाली भूमि पर कोमल पैर रखकर चलते हैं, पैरों में काँटे चुभ जाते हैं, खून की धार बहने लगती है, अति पीड़ा होती है; परन्तु मुनिकुंजर अपनी आत्मा में ही मग्न रहते हैं, उनको किसी भी प्रकार की बाधा नहीं होती और न ही उन्हें पूर्व काल के साधन याद आते हैं, उनकी अचलता एवं दृढ़ता को देखकर कर्मरूपी पर्वत नष्ट हो जाते हैं। (१०) आसन परीषहजय वन - जंगल में, गुफा में, कोटरादि में, शुद्ध प्रासुक कठोर भूमि में अथवा ठंडी, गर्म आदि शिला, भूमि आदि पर वर्षों ध्यान लगाकर बैठे हों, खड़े हों और मनुष्य, देव, तिर्यंच, या अचेतन कृत उपसर्ग आये हों, लेकिन फिर भी मुनिवर आसन छोड़कर व स्थान छोड़कर, अपनी स्थिरता छोड़कर अन्यत्र नहीं जाते ऐसे गुरुवर मेरे हृदय में सदा वास करो । (११) शयन परीषहजय सोने के महलों में रहने वाले, मणिरत्नों के पलंग एवं कोमल शय्या पर सोने वाले भी मुनिदशा में कठोर भूमि पर सोते हैं। जिसकी किनारें काँटे जैसी चुभती हैं, पत्थरों पर शयन करने से पीड़ा उत्पन्न होती है, लेकिन ऐसी दशा में भी मुनिवर जरा श्री -

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