Book Title: Jambudwip Pragnapati Author(s): Devendramuni Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 2
________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 285 थी । जातक की दृष्टि से इस राष्ट्र का विस्तार ३०० योजन था उसमें सोलह सहस्र गाँव थे। यह देश और राजधानी दोनों का ही नाम था । आधुनिक शोध के अनुसार यह नेपाल की सीमा पर स्थित था। वर्तमान में जो जनकपुर नामक एक कस्बा है, वहीं प्राचीन युग की मिथिला होनी चाहिए। इसके उत्तर में मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिला मिलते हैं'। जम्बूद्वीप- गणधर गौतम भगवान महावीर के प्रधान अन्तेवासी थे। वे महान जिज्ञासु थे। उनके अन्तर्मानस में यह प्रश्न उबुद्ध हुआ कि जम्बूद्वीप कहाँ है? कितना बड़ा है ? उसका संस्थान कैसा है? उसका आकार / स्वरूप कैसा है ? समाधान करते हुए भगवान महावीर ने कहा- वह सभी द्वीप- समुद्रों में आभ्यन्तर है । वह तिर्यक्लोक के मध्य में स्थित है, सबसे छोटा है, गोल है। अपने गोलाकार में यह एक लाख योजन लम्बा चौड़ा है। इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। इसके चारों और एक वज्रमय दीवार है । उस दीवार में एक जालीदार गवाक्ष भी है और एक महान् पद्मवरवेदिका है। पद्मवरवेदिका के बाहर एक विशाल वन-खण्ड है। जम्बूद्वीप के विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित - ये चार द्वार हैं I जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र कहाँ है? उसका स्वरूप क्या है ? दक्षिणार्द्ध भरत और उत्तरार्द्ध भरत वैताढ्य नामक पर्वत से किस प्रकार विभक्त हुआ है ? वैताढ्य पर्वत कहाँ है ? वैताढ्य पर्वत पर विद्याधर श्रेणियाँ किस प्रकार है। वैताढ्य पर्वत के कितने कूट / शिखर हैं ? सिद्धायतन कूट कहाँ है? दक्षिणार्द्ध भरतकूट कहाँ है? ऋषभकूट पर्वत कहाँ है ? आदि का विस्तृत वर्णन प्रथम वक्षस्कार में किया गया है। प्रस्तुत आगम में जिन प्रश्नों पर चिन्तन किया गया है, उन्हीं पर अंग साहित्य में भी विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। स्थानांग, समवायांग और भगवती में अनेक स्थलों पर विविध दृष्टियों से लिखा गया है। इसी प्रकार परवर्ती श्वेताम्बर साहित्य में भी बहुत ही विस्तार से चर्चा की गई है, तो दिगम्बर परम्परा के तिलोयपण्णत्त आदि ग्रन्थों में भी विस्तार से निरूपण किया गया है। यह वर्णन केवल जैन परम्परा के ग्रन्थों में ही नहीं, भारत की प्राचीन वैदिक परम्परा और बौद्ध परम्परा के ग्रन्थों में भी इस सम्बन्ध में यत्र तत्र निरूपण किया गया है। भारतीय मनीषियों के अन्तमानस में जम्बूद्वीप के प्रति गहरी आस्था और अप्रतिम सम्मान रहा है। जिसके कारण ही विवाह, नामकरण, गृहप्रवेश प्रभृति मांगलिक कार्यों के प्रारम्भ में मंगल कलश स्थापन के समय यह मन्त्र दोहराया जाता है - जम्बूद्वदीपे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे...... प्रदेशे ....नगरे..... संवत्सरे....शुभमासे...... प्रस्तुत आगम में जम्बूद्वीप का आकार गोल बताया है और उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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