Book Title: Jainstotrasandohe Part 2
Author(s): Chaturvijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab
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२२ श्री चारूप० ( चारूपमण्डन० ) २३ महानन्दलक्ष्मी० (शवेश्वर०)
हंसरत्न: ११० २४ सकलसुरासुर० ( ,, छन्दः ) २५ षट्पत्तनपुटभेदन०
जिनभद्रसूरिः ११३ २६ जीरापल्लिपुरो०
० सौभाग्यमूर्तिः २७ श्रीवामेयं० (जीरापल्लि.), सटीकम् लक्ष्मीसागरसूरिः ११६ २८ सुधाशनमाधर-
उदयधर्मगणिः १२५ २९ भरिहथुणामि ( नवग्रह स्वरूपगर्मितम् )
१२६ ३० ॐ ह्रीं अर्ह मथो० ( अट्टे महेमन्त्रगर्भितम् ) . ३१ सदा वासना ०सटीकम्
अं० जयकीर्तिसूरिः १२९ ३२ शश्वच्छासन (जीरापल्लि०, गुप्तभेदालकृतम् सिद्धान्तरूचिः ३३ शर्मप्रयच्छ.. शर्मस्तवः ( जीरापल्लि० )
१४३ ३४ प्रभु जीरिकापल्लि.
महेन्द्रसूरिः ३५ श्रीणां पदं०
,,
भुवनसुन्दरसूरिः ३६ श्रियः क्रीडा गेहं ,
१५३ ३७ महाभाग्यः ( कुल्पपाकमण्डनऋषभजिनस्तवनम् ) ,, १५९ ३८ श्रीर्योऽभिवृद्धिं० ( जीरापल्ली. ) ३९ महाप्रातिहार्य० (पावकदुर्गभण्डनसम्भवजिनस्तवनम् ),, ४० श्रीशत्रुञ्जयशैल. ( श्रीऋषभजिनस्तवनम् ) , ४१ विजयते वृषभः ( यमकमयं चतुर्विंशतिजिनस्तवनम् ,, ४२ ॐ ही श्री. मन्त्राक्षरगर्भितं ४३ श्रीपावभावतः ( यमकममं ) जिनप्रभसूरिः १७५ ४४ जिनराज!
पत्तनस्थमुनिरत्नचतुरविजयः १७६ ४५ आनन्दमन्द० (जेशलमेरुमण्डन । जिनसभुद्रसूरिः १७७ ४६ कुडकुमरोला. ( जालोर-स्वर्णगिरि० ) . १८० ४७ श्रीपाश्वनवखण्डाख्यं० ( गन्धारमण्डन० समस्यामयम् ) ० १८१ ४८ विपुलमङ्गल० ( नवखण्ड० ) आनन्दमाणिक्यः १८३
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