Book Title: Jainendra Mahavrutti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Shambhunath Tripathi
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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४६२.
घट
व्यथैष्
प्रष्
प्र
मुदै
स्खदैघ्
ञित्वरा
वैधू
दै
ऋदिङ्
जि
दक्ष
कृपै
जबर
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गड'
वट
भट
नट
चक
करने
रंगे
लगे
हगे
अक अंग
कृष्ण
रण
चण
वण
श्रण
चेष्टायाम् चलभीत्योः
प्रख्याती
बिस्तारे
महे
खनने
संभ्रमे
वैक्लव्ये
गतिदानयोः
गतिहिंसायाम्
कृपायाम्
दितोऽमी
रोगे
सेचने
वेष्टने
परिभाषणे
नृत्तौ
लोटने
तृप्तौ च
हलने
शंकने
संजने
संवरे
कुटिलायां गतौ
तौ
दाने
मथ
कनभ
क्र.य
क्लथ
चण
हल
ਮਨ
ज्वल
स्मृ
श्री
चलि
छदिर
लडि
मदी
स्वनिर्
ध्वन
फस्त
ज्वल
चल
जल
जैनेन्द्र-व्याकरणम्
स्यभु
स्त्रन
राजहू
दुभ्राशृङ्
दुम्भशृङ्
भ्राजै
ट
ट्वल
बुल
दल
वल
पुल
| कुल
.
हिंसायाम्
चलने
दोसो
श्राभ्याने
भये
नये
पाके
कम्पने
कर्बने
जिह्वोन्मश्र ने
हर्षग्लेनयोः
ने
शदे
गतौ
वृत् घटादिः
} शब्दे
डीसी
वृत्पुणादिः
दीसो
करने
धान्ये
} देखने
स्थाने
विलेखने
ཝཱ ཝཱ ཝཱ ལཱ ཤྲཱ ཤྲཱ ཨཱ སྠཽ ཤྲཱ
दाल
पथे
पहे
रमुहू
शद्लृ
पलु
कुचौ
कुच
हौ
कसू
बुध
| क्षत
चिती
कितौ
कृत
ज्यू तेर्
च्युतिर्
श्च्युतिर्
स्रुतिर्
कुथि
पुथि
लुधि
मथि
मंथ
प्राणधान्यावरोधयोः विधू
बिनु
महच्चे
संस्थान संतानयोः खाद्
गमने
}
हिंसायोश्व
निष्पचने
उदुगरणे
संचलने
मर्पणे
क्रीडायाम्
शातने
गतिविशरण यो
रोटनाहानयोः
चर्च कौटिल्य प्रतिस्तंभविलेखनेषु
जनने
गमने
वृत् ज्वलादिः
મુનિ
चोधने
सातत्याने
संज्ञाने
निवासे
गति घृणास्प
विभासे
क्षरणे
हिंसासंक्लेशयोः
शास्त्रमाङ्गल्ययोः
गतौ
भक्षणे

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