Book Title: Jainendra Mahavrutti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Shambhunath Tripathi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 537
________________ जैनेन्द्र-व्याकरणम् जर मक्षणे | वक्ष महने च पृष्ठो च क्षिनु । तक्ष निरसने वचने अनारे त्रुि जोव प्राणुधारतो पीव कांक्षायाम् सूक्ष काक्षि चाक्षि माक्षि द्राक्ष वाति मीव णीव स्थौल्ये घोस्वासिते च लुपु तीय संघर तुर्थी पाने अलीक थुवी विलिवितो श्लेपको इनवोः स्तेय 2 **** EFTTTT62848 हिंमने जुनों मी -- परिभाषपहिसाार्जन भूष प्रसवे अलंकारे जायाम् श्रर्य Mar गु उद्यमने कप शिप प्रीणने _...--- घर दिषि दिवि धिचि कृषि अव श अप हिसायाम् मिश रोपकानेच मश । हिंसाविकरण योः गतिप्रीतितृष्टिदीप्तिशिकांत्यवत्यवगमन . प्रवेशश्रवणस्वाम्यर्थ - पाचनक्रियेचालिंग - नहिसादनभायरक्षगणेष, संघात ध्यासोच गिाम शश दृशिरौ मक्ष तक्ष दंशो तनूकरगो समानी लुगिनी प्रेक्षन दशने स्तुती मत्मीकरणे मनों परिकल्कने स्यांग त्यक्ष संघाते च रन पालने चुम्बने भलने स्तृन्न राक्ष शत्र रहि पिस गतो सेचने शब्देन पेत.

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