Book Title: Jaindarshan aur Kevalgyan
Author(s): Mulchand C Bedawala
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ __ सुकोशल मुनि अयोध्या के राजा कीर्तिधर के पुत्र थे और उनकी माता का नाम सहदेवी था। राजा कीर्तिधर के दीक्षा अंगीकार करने के पश्चात् उनके उपदेश श्रवण से पुत्र सुकोशल ने भी दीक्षा ग्रहण की । परन्तु अपने पुत्र और पति दोनों के दीक्षा ग्रहण करने से माता सहदेवी ने उनके वियोग में अत्यन्त व्याकुल रहते हुये और आर्तध्यान करते हुये मृत्यु को प्राप्त कर जंगल में सिंहनी के रूप में जन्म लिया। एक बार ऐसा हुआ कि दोनों पिता पुत्र-राजर्षि जंगल में काउस्सगध्यान में खड़े थे उस समय उस सिंहनी ने आकर सुकोशल मुनि पर हमलाकर मुनि के शरीर को चीरफाड़ दिया। परन्तु मुनि समता भाव से ध्यान मग्न रहे और उपसर्ग सहन करते करते केवलज्ञान को प्राप्त किया। नव दीक्षित शिष्य: भद्रसेन मुनि चंड रुद्राचार्य ने एक गांव में एक शिष्य को दीक्षा दी और यह सोचते हुये कि कहीं यह शिष्य पुन: संसारी न बन जाए रात्रि में ही वहां से विहार कर दिया। आचार्य स्वयं नव दीक्षित शिष्य के कन्धों पर बिराजमान थे और अन्धेरे में शिष्य के उबड़ खाबड़ चलने से आचार्य को असुविधा उत्पन्न हो रही थी। क्रोध से आचार्य शिष्य के मुंडित सिर पर डंडा मारते रहे परन्तु शिष्य गुरू के प्रति अत्यन्त बड़े मान भाव पूर्वक विनय रखते और असह्य वेदना को सहते हुये चल रहा था। थोड़ी दूर जाने पर जब शिष्य संतुलन बनाकर चलने लगा तो आचार्य को आश्चर्य हुआ और शिष्य को पूछा कि अब तुम बराबर कैसे चल रहे हो इतने घोर अन्धेरे में । क्या तुम्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई है तो शिष्य ने बड़े विनम्र भाव से आचार्य को कहा हे गुरूदेव मुझे केवलज्ञान प्राप्त हुआ है और यह सुन आचार्य तुरन्त शिष्य के कन्धों से उतरकर केवली की आशातना का प्रायश्चित करते करते स्वयं भी केवली बन गए। गजसुकुमाल मुनि श्री कृष्ण के लघु भ्राता थे। अपनी बाल्यावस्था में ही उन्हें वैराग्य प्राप्त हुआ। यह देख माता पिता ने उनको विवाह सूत्र में बांधने का विचार किया तथा सोम शर्मा ब्राह्मण की पुत्री के साथ उनका लगन किया फिर भी भावि को कौन टाल सकता है। गजसुकाल के हृदय में वैराग्य भावना चल रही थी और उन्होंने नेमीनाथ के पास दीक्षा अंगीकार करके श्मशान में कायोत्सर्ग कर ध्यान मग्न खड़े रहे। संयोगवश उनके श्वसुर सोमशर्मा ब्राह्मण वहां से जाते हुये उन्हें मुनिवेश में देख और सोचने लगे कि यह तो मेरी नवविवाहिता पुत्री का भव बिगाड़ देगा और जैन दर्शन और केवलज्ञान १९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10