Book Title: Jaindarshan aur Kevalgyan
Author(s): Mulchand C Bedawala
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 10
________________ खामणा क्षमायाचना करते हुये केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। और वही शिष्या मृगावती को प्रथम केवलज्ञान प्राप्त हुआ। जब चन्दनबाला ने प्रभु के पास दीक्षा अंगीकार की और साध्वी संघ के अग्रणी बने और तत्पश्चात मृगावती भी अपने पुत्र को प्रभु महावीर समदा राजा चंड प्रद्योतन को सौंप कर दीक्षा अंगीकार कर चन्दना साध्वीजी की शिष्या बनी / और चन्दनबाला और मृगावती एक ही उपाश्रय के रहते हुये जब एक बार मृगावती दहेरे उपाश्रय पहुंची तो चन्दनबाला ने उन्हें ठपका दिया परन्तु मृगावती को अन्तकरण से क्षमा मांगतेहुये केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। और एक बार ऐसा हुआ कि चन्दनबाला साध्वी अन्धेरे में सोई होती है तो एक सर्प वहां नजदीक से जाते हुये मृगावती ने चन्दनबाला का हाथ कुछ उधर किया जिससे चन्दनबाला जाग गई और सोचा मृगावती को ज्ञान द्वारा अन्धेरे में भी सर्प दिखाई दिया और तब चन्दनबाला ने मृगावती से क्षमायाचना की जिससे चन्दनबाला को भी केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। जैन दर्शन और केवलज्ञान 201 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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