Book Title: Jainagam Paryavaran Samrakshan Author(s): Kanhaiyalal Lodha Publisher: Z_Sumanmuni_Padmamaharshi_Granth_012027.pdf View full book textPage 5
________________ जैन संस्कृति का आलोक की खेतों की उर्वरा शक्ति को नष्ट करने वाला है तथा विषमता उत्पन्न होती है। दूसरे गरीब अधिक गरीब और स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक है, उसकी इन बुराईयों को धनवान अधिक धनवान होते जा रहे हैं। इस विषमता से छिपाकर उसे खेती के लिये लाभ प्रद बताया जाता है। ही आज आर्थिक जगत् में भयंकर प्रतिद्वन्द्व व संघर्ष चल इसी प्रकार सिन्थेटिक सूत्र के वस्त्र स्वाथ्य के लिये अति रहा है। युद्ध का भी प्रमुख कारण यह आर्थिक शोषण व हानिकर है उनकी इस यर्थाथता को छिपाया जाता है और प्रतिद्वन्द्वता की होड़ ही है। जैन धर्म में अपहरण व संघर्ष उनके लाभ के गुण गाये जाते हैं। एन्टीवायोटिक दवाईयों शोषण का त्याग प्रत्येक मानव के लिये आवश्यक बताया है से शरीर की प्रति रक्षात्मक शक्ति का भयंकर ह्रास होता ताकि पर्यावरण संतुलित रहे। यदि इस व्रत का पालन है जिसमें वृद्धावस्था में रोगों से प्रतिरोध करने की शक्ति किया जाय तो भूखमरी, गरीबी, आर्थिक लूट अकाल नहीं रहती है। इस तथ्य को छिपाया जाता है और मृत्यु, युद्ध आदि प्रदूणों का अंत हो जाय। धड़ल्ले से विज्ञापन द्वारा इसके लाभप्रद होने का प्रचार ४. व्यभिचार का त्याग किया जाता है। आज का विज्ञापन दाता क्षेत्र में विज्ञापित वस्तु से दीर्घ काल में होने वाली भयंकर हानि को छुपाकर, चौथे व्रत में अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य समस्त तथा उनके तात्कालिक लाभ को बढ़ा-चढ़ा कर, बताकर प्रकार के यौन संबंधों को त्याज्य कहा है। जैन धर्मानुयायियों जनता को मायाजाल में फंसाता है यह धोखा है। जैन ___ के लिये परस्त्रीगमन, वेश्यागमन तथा अतिभोग को सर्वथा साधना में ऐसे कार्य को मृषावाद कहा है और इसका त्याज्य कहा गया है। इससे एड्स जैसे असाध्य बीमार निषेध किया गया है। इस सिद्धान्त को अपना लिया रोगों से सहज ही बचा जा सकता है। आज जो एड्स तथा जाय तो ऐसे प्रदूषणों से बचा जा सकता है। यौन संबंधी अनेक रोग व प्रदूषण बड़ी तेजी से फैल रहे हैं जिससे मानव जाति के विनाश का खतरा उत्पन्न हो गया है ३. अचौर्य व्रत इसका कारण इस व्रत का पालन न करना ही है। कामोत्तेजक __ अपहरण करना चोरी है। वर्तमान में अपहरण के तथा अश्लील चित्र बनाना व देखना भी इस व्रत के अंग नये-नये रूप निकल गये हैं। व्यापार द्वारा उपभोक्ताओं है। इससे आज विदेशों में अविवाहित लड़कियों के गर्भ के धन का अपहरण तो किया ही जाता है; कल-कारखानों रहने, गर्भपात कराने तथा तलाक आदि घटनाओं में वृद्धि में श्रमिकों को श्रम का पूरा प्रतिफल न देकर श्रम का भी हो रही है। ब्यूटी पार्लर, प्रसाधन सामग्री से शारीरिक अपहरण किया जाता है। उनकी विवशता का लाभ अस्वस्थता बढ़ती जा रही है। इन भयंकर प्रदूषण से बचाव उठाया जाता है। जीवनरक्षक दवाईयों के बीस-तीस गुणें भी इस व्रत के पालन करने से ही संभव है। दाम रखकर तथा नकली दवाइयाँ बनाकर रोगियों को मृत्यु के मुख में धकेला जाता है। लाटरी के द्वारा गरीबों ५. परिग्रह परिमाण व्रत के कठिन श्रम से की गई कमाई का अपहरण किया जा गृहस्थ को भूमि, भवन, खेत, वस्तु, धन-धान्य, रहा है। संक्षेप में कहे तो -- जितने भी शोषण के तरीके हैं गाय, भैंस आदि की आवश्यकता पड़ती है। अतः इन्हें वे सभी अपहरण के रूप हैं। बिना प्रतिफल दिये या कम । अपने परिवार की आवश्यकता के अनुसार रखना, इनसे प्रतिफल देकर अधिक लाभ उठाना शोषण या अपहरण है। अधिक धन उपार्जन की दृष्टि से न रखना, इस व्रत के यह अति भयंकर आर्थिक प्रदूषण है। इसी से आर्थिक अन्तर्गत आता है। इस व्रत में परिग्रह या संग्रह को बुरा | जैनागम : पर्यावरण संरक्षण १६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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