Book Title: Jain aur Vaidik Parampara me Vanaspati Vichar Author(s): Kaumudi Baldota Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ जुलाई-२००७ ६७ जैन और वैदिक परम्परा में वनस्पतिविचार (इन्द्रियों के सन्दर्भ में) डॉ. कौमुदी बलदोटा* प्रस्तावना : दैनंदिन व्यवहार में वनस्पतियों का उपयोग तथा उनसे वर्तनव्यवहार के बारे में जैन और वैदिक परम्परा में काफी अन्तर दिखाई देता है । रसोई की जैन पद्धति में हरा धनिया, हरी मिर्च, हरी मीठीनीम, ताजा नारियल आदि का उपयोग बहुत कम हैं । सूखे मसाले ज्यादातर पसंद किया जाते हैं । धार्मिक मान्यताएँ ध्यान में रखकर सब्जियाँ चुनी जाती हैं । आलू, रतालू आदि कन्दों का इस्तेमाल निषिद्ध माना जाता है । आज की हिन्दु जीवनपद्धति में आलू-रतालू आदि उपवास के दिन खासकर उपयोग में लाये जाते हैं। प्राचीन काल में अरण्यवासी ऋषिमुनि कन्दमूल, पत्ते, फल आदि का उपयोग आहार में करते थे, ऐसे सन्दर्भ साहित्य में उपलब्ध हैं । हिन्द पौराणिक पूजा पद्धति में ताजे फूल और पत्ते ज्यादा मायने रखते हैं। विष्ण, शिव, देवी, गणपति आदि देवताओं को विशिष्ट रंग के तथा सुगन्ध के फूल तथा पत्ते चढाए जाते हैं । ताजा नारियल फोडकर चढाया जाता है । श्वेताम्बर मन्दिरमार्गीयों के सिवाय किसी भी जैन सम्प्रदाय की पूजा तथा आराधना पद्धति में ताजा फूल-पत्ते तथा नारियल का इस्तेमाल नहीं होता । नारियल अगर चढावें तो फोडे नहीं जाते । दिगम्बर सम्प्रदाय में तो सूखे नारियल और सूखा मेवा (काजू, बादाम आदि) चढाने का प्रावधान है । बगीचे, उद्यान आदि बनाना, पेड़ों की ऋतु के अनुसार कटाई आदि करना, बेल-तुलसीहरी पत्ती चाय, ताजा अदरक, · बकुल के फूल आदि उबालकर काढा (कषाय) बनाकर रोगों का इलाज करना आदि सैंकडों बातें हिन्दु जीवनपद्धति में बिलकुल आम है । तुलसी, वड, पीपल, औदुम्बर आदि वृक्ष धार्मिक दृष्टि से पवित्र मानकर पूजा जाते हैं । जैन जीवनपद्धति में किसी भी व्रत या त्यौहारों में वृक्षों की पूजा नहीं की जाती । * सन्मति-तीर्थ, फिरोदिया होस्टेल, ८४४, शिवाजीनगर, बी.एम.सी.सी. रोड, पुणे-४११००४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 16