Book Title: Jain Vidyo me shodh ke Kshitij Ek Sarvekshan Jiv Vigyan Author(s): Kalpana Jain Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf View full book textPage 4
________________ एकेन्द्रिय, जीव, स्थावर, पृथ्वी, जल, तेज, वायु और वनस्पति । चतुरिन्द्रिय जीव , भौंरा, बिच्छू, मच्छर, मधुमक्खी, मकड़ी, मक्खी आदि ३९ प्रकारके जीव । पंचेन्द्रिय जीव नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देव इनसे प्रत्येकके अनेक भेद वर्णित है। एकेन्द्रिय जीव :-यद्यपि जीवभिगममें एकेन्द्रिय स्थावर जीवोंके तीन ही भेद किये है-पृथ्वी कायिक, जल कायिक और वनस्पति कायिक, पर उत्तरवर्ती समयमें इनमें तेज और वायकायिक और जोड़े गये जिन्हें पूर्व में त्रस माना जाता रहा है क्योंकि ये गतिशील हैं। यद्यपि आधुनिक वैज्ञानी यह नहीं मानते हैं कि पृथ्वी, जल, तेज और वायु स्वयं सजीव हैं, पर इनमें अनेक प्रकारके जीव रहते हैं, यह प्रत्यक्ष सिद्ध है। शास्त्रोंमें इन्हें चार प्रकारका बताया गया है जिनमेंसे केवल एक ही भेद है जो सलीव है, पर उसमें पृथ्वीत्व नहीं है । उसे पृथ्वीत्व ग्रहण करना है। इसी प्रकार जलादिकी भी स्थिति है । फलतः उपलब्ध पृथ्वी, जल, तेज और वायु आगमतः भी निर्जीव है, ऐसा माना जा सकता है। लेकिन आगमोंमें इनकी प्राकृतिक उत्पत्ति एवं शास्त्र-अनुपहतताकी स्थितिको इनकी सजीवता माना है। फलतः इन चार भूतोंकी सजीवता सुव्याख्यात नहीं प्रतीत होती। विद्वानोंकी गहनतासे इस तथ्यकी छानबीन करनी चाहिये । पर यह सही है कि इन भूतोंकी सजीवताकी बात जैनोंकी अपनी विशिष्टता है । लोढ़ाने वनस्पति कायोंकी आगमोक्त सजीवताको आधुनिक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्यमें अच्छी तरह समीक्षित किया है। सिकदरने भी अपने लेखमें पर्याप्तियोंको वर्तमान प्रोटोप्लाज्मके समकक्ष मानकर वनस्पतियों के अनेक आगमोक्त वर्णनोंको बीसवीं सदीके सैद्धान्तिक निरूपणोंसे जोड़नेकी खींचतान की है। लेकिन जैनने बताया है कि सभी वर्णन पूर्व यंत्र युगीन हैं। जैन ग्रंथों में वनस्पतियोंसे सम्बन्धित विविध वर्णन मुख्यतः तीन कोटियोंमें केन्द्रित किये जा सकते हैं-शरीर, आकार और वर्गीकरण । वनस्पतियोंकी कोशिकी, पर्यावरणिकी एवं शरीर-क्रिया-विज्ञान आदि पर वर्णन नगण्य है। लोढ़ा और सिकदरने इन विषयोंके कुछ उद्धरण दिये हैं जो आगम युगके प्रकृति निरीक्षणके स्थूल रूपको ही प्रकट करते हैं । इनकी सूक्ष्मता तथा भाषनीयता अब बहुत हो गई है। इन नये विवरणोंके समावेशकी प्रक्रिया एक विचारणीय विषय है। ' वनस्पतियोंके आगमोक्त वर्गीकरण पर विचार करते हये जैनने बताया है कि उपयोगितावादी वर्गीकरण न होकर प्राकृतिक गुणों या समानताओं तथा विकास वाद पर आधारित है। सर्वप्रथम उन्हें साधारण (अनंत काय) और प्रत्येकके रूपमें वर्गीकृत किया गया है। साधारण सूक्ष्म और बादर दो प्रकारके होते हैं । इन्हें निगोद भी कहते हैं। प्रत्येक जीव बादर ही होते है जो सप्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित के भेदसे दो प्रकारके होते हैं। प्रत्येक जीव प्रारम्भमें अप्रतिष्ठित ही होता है और बादमें सप्रतिष्ठित हो जाता है। सूक्ष्म साधारण जीव गोलाकार और अदृश्य होते है और ये स्थूल साधारण जीवोंमें उत्परिवर्तित हो सकते हैं । वे अलिगी होते हैं। ये प्रत्येक कोटिके जीवोंकी उत्पत्तिमें भी कारण होते हैं। ये जीवन में सबसे प्रारम्भिक रूप है । लोढ़ाने बताया है कि सूक्ष्म साधारण जीवोंको आधुनिक वेक्टीरियाके समकक्ष माना जा सकता है। ये स्वजीवी भी होते है और परजीवी भी होते हैं। इन्हें सूक्ष्मशियोंसे ही देखा जा सकता है । बादर साधारण जीवोंमें अनेक सूक्ष्म साधारण जीव होते हैं। प्रज्ञापनामें इनके ५० प्रकार बताये गये हैं। इनमें फंफूदी, काई, शैवाल, किण्व आदि भी समाहित हैं। जिन्हें आजकल ऐलगे, फंजस, वायरस आदि = ४७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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