Book Title: Jain Vidyao me Shodh ke Kshitij Ek Sarvekshan Rasayan aur Bhautik Author(s): Nandlal Jain Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf View full book textPage 5
________________ अतिरिक्त ऊष्मा, प्रकाश आदि विभिन्न प्राकृतिक तथा परमाण्वीय ऊर्जायें भी इसके प्रमख विषय क्षेत्र हैं। इन ऊर्जाओंका स्रोत क्या है, इनकी प्रकृति और कार्य क्या है, क्या इन्हें उपयोगी कार्यों में प्रयुक्त किया जा सकता है, ये और अन्य प्रश्न ही विद्वानोंको इन ऊर्जाओंकी मौलिक प्रकृतिके अध्ययनके प्रति प्रेरित करते है। प्राचीन समयमें इन ऊर्जाओं व पदार्थके उपयोगी गणों पर विचार किया गया है। विभिन्न दर्शनोंके साथ-साथ जैन आगमोंमें भी इन पर स्फुट चर्चायें प्राप्त होती हैं जो कुछ ईसा पूर्व सदियोंसे लेकर बारहवीं सदीके बीच लिखे गये हैं। भौतिकीसे सम्बन्धित विषयों पर अनेक विद्वानोंका ध्यान गया है। सम्भवतः सर्व प्रथम जैनने तत्त्वार्थसूत्रके पंचम अध्यायकी टीकामें इन विषयों पर १९४२ में विचार किया था। इसके बाद अनेक स्फुट विषयों पर अमर, सिकदर, पालीवाल, मनि महेन्द्र कुमार द्वितीय और अन्योंने आगमोक्त मन्तव्योंका तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत किया है। पिछले कुछ वर्षों में जैन ने अपने पाँच शोध पत्रोंमें इस विषय पर विस्तारसे प्रकाश डाला है। अपने पदार्थों के गुणोंके संक्षिप्त अध्ययनमें उन्होंने बताया है कि जैन आगमोंमें पदार्थों के स्थूल गुणोंकी बहुत कम चर्चा है । वैशेषिक इस विषयमें जैनोंसे कुछ अधिक यथार्थवादी हैं। जैन ने अनेक वैज्ञानिक उद्धरणोंके आधार पर प्रमाणित किया है कि ताप, प्रकाश आदि ऊर्जाएँ भारयुक्त होती हैं। यद्यपि उत्तराध्ययनमें पदार्थके अनेक रूपोंमें प्रभा (प्रकाश) को समाहित किया गया है, फिर भी तत्त्वार्थसूत्र में उसे छोड़ दिया गया है। हाँ, यहाँ छाया, अन्धकार और उद्योतके रूपमें प्रकाशकी विविधता बताई गई है। अतः यह अचरजकी वात है कि प्रभाको पुग्दलके रूपोंमें क्यों सम्मिलित नहीं किया गया। यह अन्वेषणीय है। फिर भी, यह माना जाता है कि प्रकाशकी अनेक शक्तियाँ होती हैं जिनमें दृश्य प्रकाश भी एक है। ऐसा प्रतीत होता है कि पुद्गलके आतप रूपमें ऊष्मा एवं दृश्य प्रकाशको एक साथ समाहित किया गया है। आगमें तपाये हुये गरम लोहेमें अग्नि या ऊष्माके अचेतन परमाणु प्रविष्ट होकर उसे रक्ततप्त कर देते हैं। प्रकार ऊण्मा ही प्रकाश ऊर्जामें रूपान्तरित होती है। अदृश्य प्रकाशको ऊष्मा कहा जा सकता है। पदार्थोंके कणोंमें उष्णता या प्रकाशकी शक्ति आत्मा या अदृश्य जैवशक्तिके संयोगका फल है। इनके अभिभव और पराभवके कारण इन दोनों ही ऊर्जाके रूपोंको परमाणुमय बताया गया है। शास्त्रोंमें ताप और प्रकाशके सारणी-१ में दिये गये अभिलक्षण बताये गये हैं। सारणी-१. उष्मा और प्रकाश के शास्त्रोक्त अभिलक्षण ताप या ऊष्मा के अभिलक्षण प्रकाश के अभिलक्षण १. ऊष्मा तेजसकायिक जीव हैं इसमें अदृश्य शक्तिके प्रकाश भी तेजसकायिक है। इसमें अदृश्य शक्तिके कारण सजीवता है । यह एक ऊर्जा है। कारण सजीवता है। यह एक ऊर्जा है। २. इसकी प्रकृति कणमय होती है इसके कण अनेक इसकी प्रकृति भी कणमय होती है । सूक्ष्म परमाणुओंसे बने होते हैं । ३. ऊष्मा पदार्थों को गरम करती है, पकाती है, नष्ट प्रकाश कणोंका अभिभव और पराभव होता है । करती है। ४. ऊष्मा पदार्थोंमें अवशोषित हो जाती है। यह यह दो प्रकारके स्रोतोंसे मिलता है-ठंडा और जीवनका एक लक्षण है। गरम । यह आतप और उद्योत--दो रूपोंमें पाया जाता है। ५. प्रकाश, विद्युत और मणिप्रभा ऊष्माके ही रूप हैं । जैनने बताया है कि वर्तमानमें ऊष्मा या प्रकाश एक ऊर्जाके रूपमें माने जाते हैं। इनकी प्रकृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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