Book Title: Jain Vidyao me Shodh ke Kshitij Ek Sarvekshan Rasayan aur Bhautik Author(s): Nandlal Jain Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf View full book textPage 1
________________ जैन विद्याओं में शोधके क्षितिज रसायन और भौतिकी नन्दलाल जैन, महिला महाविद्यालय, रीवा, (म० प्र०) रसायन-विज्ञान ___ रसायनके अन्तर्गत जड़ और जीव जगतके विभिन्न पदार्थों और उनके गुणधर्मके विषयमें वर्णन किया जाता है। विभिन्न समयमें लिखे गये जैन आगमिक एवं व्याख्याग्रन्थोंमें रसायनसे सम्बन्धित अनेक प्रकरण स्फुट रूपसे पाये जाते हैं। इनके विषयमें लेखकोंने शोध लेख और समीक्षा लेख तथा पुस्तिकायें लिखी हैं। इनमेंसे कुन्द-कुन्द, उमास्वाति, भगवती, अनुयोगद्वार, प्रज्ञापना आदि ग्रन्थों और उनकी टीकाओंमें वर्णित रासायनिक तथ्योंका संकलन, समीक्षण एवं तुलनात्मक निरूपण किया गया है। इनका मुख्य विषय द्रव्य और पदार्थकी परिमाण, भेद-प्रभेद, परमाणुवाद और बन्धप्रक्रिया है । एक ओर शास्त्री, न्यायाचार्य और मेहताके समान शास्त्रीय विद्वानोंने अपने विवरणोंमें शास्त्रीय तथ्योंका संकलन किया है, वहीं दूसरी ओर सिकदरने अपने शोध ग्रन्थ तथा शोध लेखमें विविध भारतीय दर्शनोंके परिपेक्ष्यमें जैन पदार्थवाद तथा परमाणवादका विवेचन किया है। यद्यपि द्रव्य और पदार्थकी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक परिमाणमें विभिन्न लेखकोंके विवरण समान है, फिर भी जैनने द्रव्यके सामान्य और विशेष गुणोंके आलापद्धतिके विवरणकी ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए बताया है कि यह परिभाषा अधिक व्यापक और समीचीन लगती है। बाटियाने पदार्थ परिभाषाके अतिरिक्त जैनागम वणित परमाणु और पुद्गलके समस्त गुणोंका संकलन कर नवीन शोधकोंके लिए उत्तम कार्य किया है। जवेरी और जैनने आगमिक परमाणु और आधुनिक परमाणुकी तुलनात्मक समीक्षा प्रस्तुत करते हुए बताया है कि जैनागम वर्णित परमाणुके गुण आधुनिक परमाणुकी तुलनामें परमाणु घटकोंके लिए अधिक सार्थक प्रतीत होते हैं । इसीलिये उन्होंने वैज्ञानिक मूलभूत कणोंको जैनागमी परमाणु के समकक्ष प्रदर्शित करनेका यत्न किया है। मुनिश्री नगराज भी इसी पक्षके प्रतीत होते हैं । इसके विपरीत जैन' और सिंहने इस परमाणुवादकी सूक्ष्मतासे परीक्षा कर यह प्रदर्शित किया है कि आगमोक्त परमाणु वर्तमान परमाणुके समकक्ष ही माना जाना चाहिये । इलेक्ट्रान, प्रोटान या क्वार्ककणोंको आगमोक्त परमाणुके समकक्ष मानने पर निम्न गुणोंकी सही व्याख्या नहीं की जा सकती : (१) इलेक्ट्रान आदि मूलकणोंको ऊर्जामय पुद्गल मानने पर भी चूँकि ऊर्जा भी कण-मय होती है, ठोस और एक प्रदेशी होती है, अतः उसमें संकोच-विस्तारके गुणोंकी व्याख्या नही की जा सकती। ये गुण खोखले परमाणुओंमें ही पाये जा सकते हैं । (२) सामान्यतः आधुनिक अनेक मूलकणोंको सम्यक् परिभाषित कर लिया गया है। इससे पता चलता है कि मूलकणोंके गुण (आवेश, द्रव्यमान आदि) भिन्न-भिन्न होते हैं। यही नहीं, न्यूटान, क्वार्क आदि कण इलेक्ट्रानकी तुलनामें ७००-२००० गुने भारी होते हैं। इस प्रकार आगमोक्त पंचगुणी - ४५९ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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