Book Title: Jain Vidyao me Shodh ke Kshitij Ek Sarvekshan Rasayan aur Bhautik
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf

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Page 4
________________ माना जाना चाहिये । इनमें केवल पृथ्वी और जल ही बन्धकी दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण हैं। स्कन्धोंके निर्माणको यह मौलिक प्रक्रिया है । शास्त्रोंमें इसे सामान्य भाषामें भी बताया गया है कि स्कन्ध अपघटन, संघनन एवं अपघटन-संघननकी क्रियाओंसे प्राप्त होते हैं। जैनने इन सभी प्रकारके स्कन्धोंके निर्माणकी दशाओंका भी संक्षेपण किया है। जवेरी ने स्कन्धोंके अनेक प्रकारके वर्गीकरणका संक्षेपण किया है। ये बादर (चाक्षुष) और सूक्ष्म (अचाक्षुष) के रूपमें दो प्रकारके होते हैं। प्रयोग-परिणत, विस्रसा-परिणत और मिश्रपरिणतके रूपमें तीन प्रकारके होते हैं । स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणुके भेदसे चार प्रकारके होते हैं । यहाँ परमाणु को व्यवहार परमाणु मानना चाहिये । स्थूल-स्थूल (ठोस), स्थूल (द्रव्य), स्थूल-सूक्ष्म (ऊर्जा), सूक्ष्म-स्थूल (गैसीय पदार्थ), सूक्ष्म (कर्मवर्गणाएँ, अतीन्द्रिय) और सूक्ष्म-सूक्ष्म (सूक्ष्मतर स्कन्ध जिनमें वर्तमान परमाणु घटक समाहित किये जा सकते हैं ।) के भेदसे स्कन्ध इस प्रकारके होते हैं। इनमें व्यवहार परमाणुको सक्ष्मके अन्तर्गत समाहित करना चाहिये। इस वर्गीकरणके विषयमें जैनने बताया है कि यह केवल स्कन्धों की चक्षु एवं अनिन्द्रिय-ग्राह्यता पर आधारित है, उत्तरोत्तर सूक्ष्मता पर नहीं। यही कारण है कि गैसीय अणुओंकी तुलनामें उर्जायें सूक्ष्मतर होती हैं, पर उन्हें गैसोंमें पहले रखा गया है । इस आधार पर सूक्ष्मताकी दृष्टिसे स्कन्ध पाँच प्रकारके ही मानने चाहिये । वस्तुतः ऊर्जायें सूक्ष्म-सूक्ष्म कोटिमें ही आनी चाहिये क्योंकि प्रायः इन्हें चतुस्पर्शी माना जाता है। इस वर्गीकरणमें कुछ स्कन्धोंके नाम आये हैं, पृथ्वी, पत्थर, पर्वत, जल, घी, तेल, आतप, छाया, वायु, कर्मवर्गणायें और सूक्ष्मतर द्वयणुक एक अन्य वर्गीकरणमें इन्हें तेईस वर्गणाके रूपोंमें बताया गया है। इनके विषयमें विस्तारपूर्वक अध्ययनकी आवश्यकता है। कहीं परिस्थर न्यायसे स्कन्धके ५३० भेद गिनाये गये हैं। अन्तमें यह बताया गया है कि स्कधोंका विभाजन अत्यंत जटिल है और वे अनन्त प्रकारके होते हैं। इस वर्गीकरणके विविध रूपोंसे यह स्पष्ट प्रतिभास होता है कि ये भेद मात्र सूक्ष्मता और स्थूलताके आधार पर किये गये हैं। इनमें स्कन्धोंकी आन्तरिक संरचना का आधार नहीं है। फिर भी, ये संरचना प्रधान युगके कालके अन्य वर्गीकरणोंसे अधिक सूक्ष्म निरीक्षणको निरूपित करते हैं। यह इस तथ्यसे प्रकट होता हैं कि उस समय ऊर्जाओंको भी स्कन्ध या कणमय माना जाता है। स्कन्धोंका निरूपण यद्यपि घट, पट, वस्त्र, भूषण, खाद्य पदार्थ, दश विकृतियाँ, शरीर, कर्म आदि अनेक स्कन्ध पदार्थों के नाम शास्त्रोंमें आये हैं पर इनका विशेष विवरण उपलब्ध नहीं है । लेकिन चार महाभूतोंके कुछ विवरण कुछ स्थानों पर उपलब्ध हैं जिनका संक्षेपण जैनने किया है। इसके अनुसार यद्यपि प्रारम्भमें यह माना जाता है कि ये महाभूत स्कन्ध विशेषको निरूपित न कर एक-एक जाति विशेषको निरूपित करते हैं, फिर भी उपलब्ध विवरणसे यह प्रमाणित नहीं होता। पृथ्वीके अन्र्तगत ३६-४० ठोस पदार्थोके नाम अवश्य हैं पर जल, अग्नि, और वायुके अर्न्तगत केवल इनके विभिन्न भेदोंके ही नाम दिये गये हैं। ये भेद श्वेताम्बर आगमों तथा तत्त्वार्थसारमें प्राप्त होते हैं। यह संभव है कि अनन्त संभावित स्कन्धोंमेंसे केवल ये ही स्कन्ध आगमयुगीन समयोंमें दृष्टिगोचर रहे हों। यह आवश्यक है कि आगमिक एवं दार्शनिक साहित्यको स्कन्धों के विवरणके लिये आलोकित किया जाय । साथ ही, यह विवरण नामरूपेण ही है, विशेष विवरण नहीं। इस विषयमें भी छान-बीनकी आवश्यकता है। भौतिकी (अ) ऊष्मा और प्रकाश भौतिकीके अन्तर्गत पदार्थोंके स्थूल उपयोगी भौतिक गुणोंका अध्ययन तो किया ही जाता है, इसके - ४६२ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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