Book Title: Jain Stotra Sanchayasya Part 1 2 3
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Ramanlal Jaychand Shah Kapadwanj

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Page 14
________________ ॐ नमो जिनाय आगमोद्धारक आचार्यप्रवरश्री. आनन्दसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः श्रीसोमदेवगणिनिर्मितावचूरिसमेता आचार्यपुङ्गव-श्री० सोमसुन्दरसरिरचिता युष्मदस्मच्छब्दरूपरचनाश्चिता अष्टादशस्तोत्री॥ स्तुवे पाच जिनाधीश, पार्श्वयक्षोपसेवितम् । प्रणतानल्पसङ्कल्प-दानकल्पद्रुमोपमम् ॥१॥ पूजितत्वं जन: पूज्य:, स्यात् सर्वजगतामपि हीलितत्वां तु नैवैति, दुःखोच्छेदः कदाचन ॥२॥ अवचूरि:-बहुव्रीहेरेकवचने युष्मच्छब्दस्यैक १ द्विर बहु३ वचनैः प्रत्येकं त्रयः स्तवाः, बहुव्रीहेर्द्विवचनेपि युष्मच्छब्दस्यैक १ द्वि २ बहु ३ वचनैश्च प्रत्येकं त्रयः स्तवाः, बहुवचनेपि युष्मच्छब्दस्यैक १ द्विर बहु ३ वचनैः प्रत्येकं त्रयः, एवं युष्मच्छब्दप्रयोगगर्भा नव स्तवाः। एवमेव चाऽस्मच्छब्दप्रयोगगर्भा अपि नव । सर्वे अष्टादश इति रचनाक्रमः । स्तुवे०-प्रणतानामनल्पाः सङ्कल्पाश्चिन्तितानि तेषां दाने कल्पद्रुम उपमा-उपमानं यस्य स, तम् ॥१॥ पूजितः त्वं येन स पूजितत्वं, त्वां मा इत्यादिषु ' त्वमौ प्रत्यय०' सिद्धहेम० ॥२॥१॥११॥ इत्यस्य, प्रिया यूयं यस्य स "Aho Shrut Gyanam"

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