Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1916 Book 12
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 2
________________ अभिधान राजे : ( प्राकृत ( मागधी ) भाषा बृहत्कोश ) प्रथम द्वितीय और तृतीय भाग छपकर तैयार है ! दीर्घदर्शी विद्वान लोग सर्वदर्शस्थ सदस्यतव्य विषय के अन्वेषण में दत्तवित्त चता विरसनदी को आनन्दसुरदृष्ट- अश्रुत - अर्द्ध मागधी (प्राकृत) 3 होते हैं इस लिये हो क्या ? उसी जिज्ञासारूप सनदी बनाने के लिये और आर्यावर्त में अज्ञात भाषाका संस्कृतभाषा के समान प्रचार करने के ये, तथा प्राकृत-- भाषामय अपरिचित जैनधर्मके गृढ तत्त्वों को सरल रीति से प्रचार कर सर्व साधारणोंको उपकार पहुचाने के लिये परम कारुणिक कलिकालस अकल्प, श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय, भट्टारक श्री श्री १००८ ' श्रीमद विजयराजेन्द्र रीश्वरजी महाराजने अपने जीवन महीरुहके अमर फलकी तरह अंदाजन चा यक्ष श्लोक प्रमाणका प्राकृतभाषा प्रवर्त्तक अपर्वजन्मा अकारादि वर्णानुक्रमसे उक्त कोश निर्माण किया है || इस महाकोष सार्वज्ञीय पञ्चाङ्गीक तथा माणिक पूर्वाचायों के निर्मित प्रकी र्णादि ग्रन्थोंके सानुवाद प्राकृत मूल शब्द, वनन्तर उनके लिङ्ग, धातु, प्रत्यय, समास, व्युत्पत्ति, अर्थ, आदि दिखाकर त सब्द संबन्धि विशेष व्याख्याओं पाठ जिन २ सूत्रो, प्रकीर्णो, और ऐतिहासिक ग्रन्थों में है, वे ग्रन्थ अध्ययन, उद्देश वर्ग आदिकों के साथ रक्खे गये हैं जिन को देखकर वाचकवर्ग एक विषयको अनेक शास्त्रों से सप्रमाण सिद्ध करने को अनिवार्य शक्तिमान होग. इस चमत्कृतिकारक अपूर्वा पूर्वशास्त्र संगृहीत उपमातीत शब्द संदर्भ कोषका विवेचन जितना लिखा जाय उतना ही कम है, इसका पूर्ण संक्षिप्त तत्व, भली भांति से लिखा गई विस्तृत भूमिका के वांचनेसे ही ज्ञात होगा। कोश निर्माता महानुभावका जीवन परिचय भी : बहुत सुन्दरतासे दिखलाया गया है। यह कोष चार भागों में पूर्ण होगा. , इस लिये जिन विद्वानों, श्रीमानों का राजा महाराजाओं को इस ग्रन्थ के मधुररस को लेने की इच्छा हो, अथवा गीर जैनधर्म के तत्त्वोंको जान की इच्छा हो, तो शीघ्र ही इसके प्रत्येक भाग को मंगावर अवलोकन करे । मृत्य प्रत्येक भाग का केवळ २५ ) रुपया रक्खा गया है जो कि पुस्तक के कद में बहुत ही कम है। मिलनेका पत्ता मु० रतलाम (मोलवा ) अभिधानराजेन्द्र - कार्यालय.

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