Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 4
________________ निवेदन --:: दिगम्बर जैन सम्प्रदायके शिलालेखों, ताम्रपत्रों, मूर्तिलेखों और ग्रन्थप्रशस्तियोंमें जैनधर्म और जैन समाज के इतिहासकी विपुल सामग्री बिखरी हुई पड़ी है जिसको एकत्रित करने की बहुत है बड़ी आवश्यकता है। जब तक 'जैनहितैषी ' निकलता रहा, तब तक मैं बराबर जैनसमाजके शुभचिन्तकों का ध्यान इस ओर आकर्षित करता रहा हूँ । परन्तु अभी तक इस ओर कुछ भी प्रयत्न नहीं हुआ है और जो कुछ थोड़ासा इधर उधर से हुआ भी है वह नहीं होनेके बराबर है । Jain Education International ast प्रसन्नता की बात है कि बाबू हीरालालजी की कृपा और निस्वार्थ सेवासे आज मेरी एक बहुत पुरानी इच्छा सफल हो रही है और जैन शिलालेख संग्रहका यह प्रथम भाग प्रकाशित हो रहा है । बाबू हीरालालजी इतिहासके प्रेमी और परिश्रमशील विद्वान् हैं । उनके द्वारा मुझे बड़ी बड़ी आशायें हैं । वे संस्कृत के एम० ए० है । इलाहाबाद यूनीवर्सिटीकी ओरसे उन्हें दो वर्ष तक रिसर्च स्कालशिप मिल चुकी है और इस समय अमरावती के किंग एडवर्ड कालेज में वे संस्कृतके प्रोफेसर हैं । कारंजाके जैनशास्त्र भण्डारों का एक अन्वेषणात्मक विस्तृत सूचीपत्र सी० पी० गवर्नमेण्टकी ओरसे आपने ही तैयार किया था, जो मुद्रित हो चुका है । आपकी इच्छा है कि शिलालेखसंग्रहके और भी कई भाग प्रकाशित किये जायँ और उनके सम्पादनका भार भी आप ही लेना चाहते हैं । मुझे आशा है कि माणिकचन्द्र-ग्रन्थमालाकी प्रबन्धकारिणी कमेटी इस भागके समान आगे भागों को भी प्रकाशित करने का श्रेय सम्पादन करेगी । अस्तव्यस्त और जीर्णशीर्ण अवस्था में पड़े हुए जैन इतिहासके साधनों को अच्छे रूपमें प्रकाशित करना बड़े ही पुण्यका कार्य है । निवेदकनाथूराम प्रेमी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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