Book Title: Jain_Satyaprakash 1956 11
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कवि लावण्य समय कृत लक्ष्मीदेवी गीत श्री. भंवरलालजी नाहटा कवि लावण्य समय सोलहवीं शतीके एक सुप्रसिद्ध विद्वान कवि हुए हैं। उनकी बहुतसी कृतियां जैन साहित्यमें सुविदित हैं । सं. १६२० के आसपास लिखे हुए खरतरगच्छीय सुकवि हीरकलशकी कृतियोंके स्वयं लिखित गुटके से उद्धृतकर देवीजीका गीत यहां दिया जा रहा है। यह लघुकृति है अवश्य, पर शब्दयोजना सुंदर और प्रासाद गुण युक्त है । इस रचनामें जिस माताजीकी स्तवना है, नामका निर्देश नहीं मिलता; पर कमलवासिनी, चारभुजावाली, समृद्धिशालिनी देवीका उल्लेख है अतः लक्ष्मीदेवीकी स्तवना होनेका सहज अनुमान किया जा सकता है। यह कृति राजस्थान पुरातत्व मंदिर स्थित गुटकेसे उद्धृतकर साभार प्रकाशित की जा रही है। कवि लावण्यसमय कृत लक्ष्मीदेवीजीका गीतसूर सिसि मंडला श्रवण वर कुण्डला, पहिरण निर्मला चीर चंगा । अंग विद्रम दला दंतमुक्ता फला, कठिन कुच श्रीफला सुइ सरंगा ॥ माई पूजिस फूलड़े आज वहु मूलड़े, चंदन केसर रंग रोला । जगत्र जन नाइका वंछित दाइका, भगतिजन करइ कमला कलोला ॥ १॥ मा.॥ माध माणिक जड़ी मात्र अंतइ अड़ो, राखड़ी रूपि सिउ रंगि चउड़ी। सोहए सिरि चड़ी पेखतां परिगड़ी, वंकुड़ी भमुहड़ी धनुष भीड़ी ॥२॥ मा.॥ कनकमइ रूडलइ चिहुं भुजे चूड़लइ, हार श्रृंगार टोली तपती। । मेखला खलकती नेउरा रणकती, दुःख दालिद हेला खपती ।। ३ ।। मा.॥ हंस जिम चालती गज जिम माल्हती, कमल वासायनी देवी दीठी । भणति लावनसमइ वंछित फलं पोयइ, माई भोलिड़ा भगतिमइ भलइ तूठी ॥ ४॥ मा.॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28