Book Title: Jain_Satyaprakash 1955 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मड्डाहड़गच्छकी परंपरा लेखक : श्रीयुत अगरचन्दजी, भंवरलालजी नाहटा श्वेताम्बर जैन संप्रदायके अनेक गच्छ राजस्थानसे भी सम्बन्धित है । इससे मध्यकालमें राजस्थानमें जैनधर्मका कितना व्यापक प्रचार रहा, अनुमान लगाया जा सकता है । ८४ गच्छोंमेंसे आधेसे अधिक गच्छ और उनकी अनेक शाखाएँ राजस्थानके भिन्न २ स्थानोंके नामसे प्रसिद्ध हुई। उदाहरणार्थ उपकेशगच्छ, कासहृद, कूर्चपुर, कोरण्टक, खण्डेलवाल, नाणावाल, भीमपल्ली, संडेरक, काछोलीवाल, ब्रह्माण, पल्लिवाल, गूदाऊच, आदि अनेक गच्छ और बड़गच्छकी कई शाखाएँ जैसे साचोरा, भीनमाला, जालौरा, रामसेनीया, चित्तौड़ा, मड्डहड़ा आदि भी राजस्थानके स्थानोंके नामसे ही प्रसिद्ध है । यहाँ उनमेंसे मड्डाहड़ा गच्छ, जो कि बृहदगच्छकी पट्टावलीके अनुसार बड़गच्छकी ही एक शाखा है-की परंपराके सम्बन्धमें प्रकाश डाला जा रहा है। श्वेतांबर जैन संप्रदायके जो शताधिक गच्छ थे, उनमें से अधिकांश अब नामशेष हो चुके है । पर कई गच्छ ऐसे भी है जिनके साधु तो अब नहीं है, पर उस गच्छके महात्मा--गृहस्थ कुलगुरु आज भी विद्यमान हैं, ये जैन जातियोंके कई गोत्रोंकी वंशावलियों लिखने आदिका काम करते हैं। उन महात्माओंका समाजमें और दृष्टि से तो कोई अधिक आदर नहीं हैं, इसलिये हमने बहुत गच्छ, जिनकी परम्परामें वे महात्मा अब भी विद्यमान है, उन गच्छोंको लुप्त हुआ ही मान लिया है। उदाहरणार्थ धर्मघोषगच्छ, जो एक बड़ा प्रभावशाली गच्छ रहा है, उसके यति-साधु तो अब विद्यमान नहीं हैं, पर उस गच्छके गुरासा-(कुलगुरु) नागोरमें आज भी गोपजी गुरांसा विद्यमान है। इसी प्रकार मारवाड़के कई गाँवोंमें और उदयपुर आदिके गाँवोंमें वे महात्मा लोग विद्यमान है, जो उन पुराने गच्छोंकी स्मृति दिला रहे हैं। हमारा उनसे संपर्क न होनेके कारण जैन समाजके इतिहासका एक महत्त्वपूर्ण अध्याय हमसे अज्ञात रह जाता है । वे महात्मा चाहे आज धार्मिक दृष्टि से किसी योग्य नहीं पर उनकी पूर्व परंपरामें बहुतसे समर्थ आचार्य एवं विद्वान हो गये है, जिन्होंने जैन समाज और साहित्यकी बहुत अच्छी सेवा की है । अतः उनके पास अपने गच्छकी और जैन समाजकी जो कुछ ऐतिहासिक सामग्री व साहित्य है उसकी जल्दीसे जल्दी खोज की जा कर प्राप्त जानकारी प्रकाशमें लानी चाहिए। दो वर्ष पूर्व आबू समितिके प्रसंगसे राजस्थान सरकारकी ओरसे जब मुनि जिनविजयजीके नेतृत्वमें मेरा सिरोही जाना हुआ, तो वहाँके मंदिरोंसे संलग्न ही मड्डाहड़गच्छकी १ ये बहुत सज्जन व्यक्ति है। धर्मघोषगच्छकी शाखाओंके आचायोकी नामावली आदि इनके पास हैं, उसकी नकल स्व. हरिसागरसूरि द्वारा हमने प्राप्त की थी। For Private And Personal Use Only

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