Book Title: Jain_Satyaprakash 1952 09
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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म : १२ ] युगप्र१२........विवाse
[२१५ तह विहु राहड़ी मंडि करि, वयणु मनावइ जाम । वासु खेउ सुहगुरू करइ, पातल कुमरह नाम ॥२०॥
॥ भास ॥ अह सुहवासरे, सित्तुंज गिरिसरे, संजम सिरिवर नारि सणीजउ । जिणकुसलसरि गुरो, रिसह तायह हरे, मंडइ नंदि सुवेहि हरिसभरे ॥ २१ ॥ कारह केल्ह उ मंति अवारिउ, अनु चउविह विहि संघह पूय । वरिसइ घणु जिम दाण जलेण, विहसइ मांगण जण कदलिय वण ॥ २२॥ विविह विभूसण सोहिय वरतणु, हयवरि चड़िउ पातलु कुयरो। किरिवर सुरतर दाण दियतउ, संध सहिउ व्रतचउरिय पहुतउ ॥ २३ ॥ तहि पजलइ सुह झाणानल धणु, होमइ चउर कसाए घिउ घणु। पातल कुयरह सुहगुरु जोषिउ, कारइ वयसिरि सउ हथलेवउ ॥ २४ ॥ हलु हलु बहिनुलि पातलु परणए, इम मुहि वयणु भणंतिय तहि मिलि । गायहि दिल्लिय पमुह नयर चिय, नारि सणिय मंगल गीयु ॥२५॥ पहिलउ मंगल रिसह जिणंदह, बीजउ चउविह सिरिविहि संघह । अणिणिउ मंगल सुविहिय सुहगुरु, चउथउ वयसिरि सउ पातलुवर ॥ २६ ॥ इण परि रिसह जिणंदह मंदिरि, सरसई नंदणु परिणइ वयसिरि । वाजिइ नंदिय तूर महुर सरे, कटरि महसउ सलहउं बहुपरि ॥ २७ ॥
॥ वस्तु ।। विमल गिरिवर, विमल गिरिवर, सिहरि मंडे । रिसहेसर जिण भवणि नंदिवेहि जिणकुसल सुहगुरु ॥ तउ हयवरि चड़िउ वरो, दाणु देह किरि कप्पतरुवर । पातलु चररिय पत्तु तर्हि, परिणय संजुमु नादि । जय जय सद्दु समाच्छलिउ, रिसह जिणेसर वादि ॥२८॥ तसु जसोभद्द मुणि दिन्नु वर नाम, जिणकुसलसूरि गच्छाहिवेण । अह पढइ किमिहि कमि सयल विज मुणि, सिरिअमियचंदगणि गुरसमीपे । अहह जुगपवर जिणलद्धिसूरीसरा, मुणिय नियपट्ट माणससरंमि । हसलीलं जसोभद्दगणि पुंगवं, दियइ गोलेण सयलंपि सिक्खं ॥३०॥ सुगुरु आपसि ठावंति जुगवरपए, तासु तरणप्पहायरिय राया। माध सुकिल्ल दसमी चउदछडुत्तरे, पासजिणभवणि जेसलपुरम्मि ॥३१॥
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