Book Title: Jain_Satyaprakash 1952 09
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 19
________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org युगप्रवर (जिनचंद्रसूरि) विवाहलउ (श्रीजिनलब्धिमूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि विवाहलउ) संपादक :- श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा तहि सु जाओ कुले, नयरि तहिं निवसए, नर रयणु मंतिकेल्हाभिहाणो ॥ ३ ॥ विविह बिन्नाण वर, धम्म कम्म जुया, रेह रूवधर गेहलच्छी। सीलगुणधारिणी, तासु सहचारिणी, सरसई महुर झुणि वीणवाणी ॥ ४ ॥ तेर पंचहुत्तरे, सुह मुहुत्तमि सा, पसवए पुत्तु तसु ठविउ नामु । पातलो ताय गेहमि अहवड्ढए, सुरतरो जेम नंदणवर्णमि ॥ ५ ॥ ॥ वस्तु ॥ पुहवि स लहऊं, पुहवि सलहउं, देस सिणगारू । कुसुमाणउ वर नयरु तत्थमंति केल्हणु पसिद्धउ । किरि मग्गण दीणजण काम कुंभु धणकण समिद्ध। तमु गेहिणि सरसइ उयरि, सीपंतरि सुकुमारु । मुत्ताहल जिम संभमिड, पातलु नामि कुमार ॥६॥ अह सिरि ढिल्लिय वर पुरह, स्यवइ संघवइ राउ । चल्लिउ मेलवि संघु वणु, हियइ धरेविणु भाउ ।। गाजए गाजए दाण जलि, जलहर जिम वरसंतु । बारए वारए दीण दुह, दावानलु परतंतु ॥७॥ कमि कमि चउविह संघ सउ, हल्ल कल्लोलहि जंतु । पहुतउ संघवइ तहिं नयरि, कुसुमाणइ विहसंतु ॥ जिम जिम केल्हण मंति तहिं, पेखइ संघु अबाहु । तिम तिम बाधए तासु मणि, जोत्र हरेसि उच्छाहु । हरसिहि संधवह इम भणए, मंति केल्हा निसुणेहु । वेगिहि वेगिहि सामहउ, संघह सोह दियेहु ॥ •तउ घण सामग्गिय सहिउ, निय परियण पुत्त संजुत्त । रंगिहि रंगिहि चलिय, केल्हउ संघ सहित्तु ।। ९ ॥ ठाणिहि ठाणिहि संघ तहि, लोय मिलंति अपार । वाजइ वाजइ ढोल अनु, पंच सबद सविचार ॥ दीसह दीसइ पाइ जण, रहवर हयवर घाट । For Private And Personal Use Only

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