Book Title: Jain_Satyaprakash 1949 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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४] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[वर्ष १४ १४ नेमिविवाह. १५ व्यावलौ (तेरापंथी भीखनजी प्र.) अब कतिपय संशोधन एवं नवीन ज्ञातव्य दिया जा रहा है:
१. सेवकरचित ऋषभदेव धवलबंध विवाहलो, हमारे संग्रह के १७ वीं शतीके गुटकेमें है। उसमें रचयिताका नाम सेवक के स्थान पर "श्रीदेव" लिखा गया है एवं इसकी गाथा २७६ है। ढाल ४४का होनेसे कापडियाजीने इसे महाकाय कृति लिखा है, पर ढालें तो नेमिशान्ति विवाहलोंकी ४४व पार्श्वनाथविवाहला ( ब्रह्म रचित ) में ४६ है। पर ग्रंथाग्रन्थके परिमाणको देखते हुए सुपार्श्व विवाहलो सबसे बडा प्रतीत होता है।
२. प्रो. कापडियामें ब्रह्म विनयदेवसूरिरचित सुपार्श्व जिन विवाहलोको ५८ कडीकी कृति होनेकी संभावना की है, पर वह ठीक नहीं है। विजयधर्मसूरि ज्ञानभंडारके गुटकेमें उसका (२७३ गाथाका व ३४ ढाल) ग्रं, ५८१ लिखा है, अतः कडी ५८ नहीं २५८ समझनी चाहिये । जै. गु. क. भा. ३ में पद्यांक ५८ है पर उसके पीछे सेंकडेका सूचक अंक न होनेसे यह भ्रम हुआ है। पर ग्रन्थाग्रन्थ ५८१ पर विचार करते तो यह भूल न होती।
३. बहुतसे विवाहलोमें उनके नाम विवाहला एवं धवल दोनों या केवल धवल भी भाया है इससे धवल एवं विवाहले एकार्थवाचक प्रतीत होते हैं। यदि यह ठीक है तो फिर धवल संज्ञक निम्नोक्त रचनायें भी विवाहलोंकी सूचीमें सहज निर्दिष्ट की जा सकती हैं।
१ नेमिनाथ धउल, गा. १३, जयशेखरसूरि जै. गु. क. भा. ३, पृ. १४७८।। २ वाजपूज्यस्वामी धवल, विनयदेवसूरि (१७ वीं) जै. गु. क. भा. ३, पृ. ६११। ३ जिनपतिसूरिगीत गा. २१ साह 'रयण । (प्रा. अ जै. का. संग्रह पृ. ७) ४ उपर्युक्त सूचीके अनुसार सबसे अधिक विवाहलोके रचयिता ब्रह्म विनयदेवसूरि हो
ज्ञात होते हैं। विवाहलों की सूची में निर्दिष्ट कई विवाहलों में ग्रन्थकारोंने उनकी संज्ञा विवाहला नहीं दी है, अतः वह वास्तवमें इस सूचोमें आने योग्य हैं या नहीं है ग्रन्थोंको भलोभांति पढकर निर्णय करना आवश्यक है।
अशुद्धिका संशोधन 'जैन सत्य प्रकाश के क्रमांक १५८ में प्रकाशित मेरे घोघा पार्श्वनाथ सम्बन्धी लेखमें श्री जिनोदयसूरि नामके स्थान पर श्री जिनेन्द्रसुरि छप गया है। पाठक सुधारकर उपयोग करें।
अ. ना.
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