Book Title: Jain_Satyaprakash 1944 05
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[ वर्ष
[" हांडीयो " साप्ताहि: सुरत ता. ११-५-४४ नामां] “ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ માસિક આ એક વિક્રમસિહસ્ત્રાબ્દિ મહોત્સવ અંગે ખાસ અંક તરીકે બહાર પડયા છે. એમાં જૈન વિદ્વાના અને અભ્યાસીએના મનનીય લેખાને સુંદર સંગ્રહ થયા છે. અંક પાછળ લીધેલો જહેમત ફળી છે એ અંકના ઉઠાવ જોતાં સ્પષ્ટ જણાઈ આવે છે. વિક્રમ વિષે કેટલુંક ઉપયોગી સાહિત્ય રજુ કરી જૈન સત્ય પ્રકાશે હિદની સારી સેવા બજાવી છે. તે માટે એના તંત્રી એને સંચાલકા ધન્યવાદને પાત્ર છે. ’ [" जैनमिंत्र " सारतादिङ : सुश्त ता. ११-५-४४ ]
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हमारे श्वे. जैन भाईयोंने अहमदाबादमें 'जैनधर्म सत्यप्रकाशक समिति ' अविमतके इतिहास और पुरातत्त्वको प्रकाशित करनेकी भावनासे स्थापित कर रक्खी है, और उसकी ओरसे 'श्री जैन सत्य प्रकाश' नामका एक मासिक पत्र ९ वर्षसे शाह चीमनलालजी के सम्पादकत्वमें प्रकाशित होता है। अभी ही उसका क्रमांक १०० ' विक्रम विशेषांक' के नामसे प्रगट हुआ है । इस बृहद् विशेषांकमें जैन साहित्य में सम्राट् विक्रमादित्यके विषयमें जो भी सामग्री उपलब्ध है वह संग्रह की गई है । रायल साइजके २३४ पृष्ठोंमें बहुमूल्य लेखोंसे सुसजित यह सचित्र विशेषांक अवश्य एक संग्रहणीय वस्तु है और इस सफलता पर हम सम्पादक महोदयको वधाई देते है ।
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चाहिये
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इस विशेषांक के पाठसे यह स्पष्टतः प्रमाणित होता है कि इस्वोसनले पूर्व पहली शताब्दिमें भारतमें विक्रमादित्य नामका एक महान् राजा हुआ था । जिसने शकोंको परास्त करके भारतका उद्धार किया था । अपने अन्तिम जीवन में वह जैन के सम्पर्क में आया था और सम्भवतः जैनी हो गया था ।
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यह विशेषांक उपयोगी लेखोंसे ओतप्रोत है । पाठकोंको मंगाकर पढना - कामताप्रसाद जैन ।
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પત્રો
[ श्री सूर्यनारायण व्यास, तंभी 'विभ': उज्जैन, ता. १०-४-४४]
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'जैन सत्य प्रकाशका विक्रम- विशेषांक मिला, इतना भव्य, आकर्षण युक्त, सुंदर, और अध्ययनपूर्ण विक्रम - साहित्य प्रस्तुत करनेके लिए आपके श्रम, और सुरुचिकी जितनी प्रशंसा की जाये थोडी है । आपने अपने दृष्टिकोणले विभिन्न रूपेण विचार व्यक्त किये हैं । आप यदि एक परिशिष्ट अंक और निकाल कर जैन दृष्टिसे किस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है, और कितने अभिमत विभिन्न आचार्योंके हैं, इस पर प्रकाश डाले, और अपना मत भी सभी मतोंके सामंजस्यके साथ व्यक्त करें तो उत्तम होगा। तथापि आपको ऐसे सुंदर अंकके लिए बधाई । [म. भ. श्री गौरीश१२ ही यह भोज भनभेर, ता. ३-५-४४ ]
'श्री जैन सत्य प्रकाश 'का विक्रम विशेषांक प्राप्त हुआ। उक्त विशेषांकको मैंने अवलोकन किया। महाराजा विक्रमके संबंध में उक्त विशेषांक में अच्छा प्रकाश डाला गया है, और लेख सब गवेषणापूर्ण हैं । "
[ पू. थं. सुमतिविन्य गशि: यांयांपर, वि. स. २००० चैत्र वहि ४ ]
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તમારા તરફથી મેારખીમાં ટપાલ મારફત ક્રમાંક ૧૦૦ વિક્રમ-વિશેષાંક મળ્યું છે,
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