Book Title: Jain_Satyaprakash 1943 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरिहन्त-चैत्य' शब्दका अर्थ [ रतनलालजी डोसीको जवाष ] रखक----पूज्य मुनिमहाराज श्रीविक्रमविजयजी (क्रमांक ८७ से क्रमशः) वा. ३-११-११ के स्था. जैगपत्रमें उपचारके विषय में डोसीजो शास्त्रका लेश भी ज्ञान न होनेसे हस्तिश्वान न्यायसे उपचार शब्दका वर्णन यद्वातन्द्रा करते हुए कहेते है कि औषधोपचार, कुतर्कोपचार, इच्छितोपचार, परन्तु शास्त्र में इन उपचागेका अवलम्बन नहीं होता है। इस प्रकारके दुरालोचनसे कोई भी सिद्धान्त अन्यथा नहीं हो सकता, क्योंकि जब उपचार शब्दका भी झाम नहीं है तो उसके दुरूह प्रभेदोका क्या विचार हो सके ? श्रीविजयानंदरिश्वरजी महाराजने उपासक दशांगमं मूर्तिपूजाका जिक्र नहीं' ऐसा लिखा है तो भी आपकी दृष्टसिद्धि नहीं हो सकती है, क्योंकि वे तो 'अहल मिका अहत प्रतिमा' ही अर्थ करते हैं। इसी मतलबसे सरिजीने लिखा कि इसका अर्थ यह नहीं कि उपासक दशांगमें नाम मात्र भी मूर्तिका विषय नहीं, मृरिजीके लेखको नहीं समजते हुए उनको हठधर्मी कहने में शर्म आनी चाहिए। फिर लिखते है कि अंबडाधिकार में आप अन्य तीम ही नब साधुका समावेश करते है तब आनंदाधिकारमें अन्ययूथिक देवम ही मतिको क्यों नहि मिला लेते ? ' हां, 'अन्ययूथिक देव' शब्दसे आपने मृति म्घीकार ली, जिससे उसमें ही मृतिको मिलाने का प्रश्न करते हो, नब नो, चम्ययूथिक देवर्क माश पुन्धि अणालित्तेणं आलवित्तए वा संलषिसए वा इसका, कुछ संबंध मिलाईए । न मालूम यह वाक्य कहांसे आ पडा? डोमीजीका मारा खेल बीगाड रहा है। और अन्यतीर्थिक साधु वस्तुतः साधु न होनेमे अस्य तो में उनका समावेश हो सकता है, और अन्य तीर्थिक परिगृहीताईमूति मात्र अमान्य नहीं है, जो अमान्य है उसको सूचानक लिए ही 'अभ्यतीर्थिकपरिगहीता चैत्य'का पृथक् उपादान सार्थक है, अन्ययूथिक देवमें उसका समावेश नहीं हो सकता है। चारण मुनिक प्रकरणम ढर्यापथिकाको आलोचना जो बताई गई है वह यथार्थ ही है, और उस स्थलका मूल पाठ भी पहिले ही दृष्ट और विचारित है। तभी तो यह अर्थ प्रामाणिक होता है, नहीं तो 'तस्स ठाणस्स' का अर्थ सर्वथा मंगत हो ही नहीं सकता, क्योंकि वहां तो तुमारे हिसाबसे ज्ञानका गुणानुवाद ही होता है, फिर उस स्थान (तस्स ठाणस्स) की आलोचना कैसे ? अगस्या तुमको भी गमनागमन मंबंधी आलोचना कहनी होगी। तो फिर नाहकमें 'तस्स ठाणस्स'की शरण लेकर विना युक्ति गममागमन संबंधी यथार्थ For Private And Personal Use Only

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