Book Title: Jain_Satyaprakash 1941 04 05
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८.८। મહાપુરાણકા મ [330] ० जिनसेन ने इस है । इससे भी आ० जटिल श्वेताम्बर सिद्ध होते हैं । श्लोकके कथनको उठाकर आदिनाथपुराणके श्लो० नं० १३९ में संग्रहीत कर लिया है, और मंत्री चामुण्डरायने तो चामुण्डपुराणमें इसको ज्यों का त्यों ही उठा लिया है, जिनमें "चालनी" के स्थान सिर्फ "सारणि" (झाडू) पेसा पाठान्तर लिखा गया है। प्रो० आ०ने उपाध्ये II. 1. विस्तृत विचारणा करके साफ बताते हैं कि- 46 ज्ञात होता है कि आठवीं शताब्दिके चतुर्थ भागके आरम्भमें दक्षिण और उत्तर भागमें श्वेतांबर और दिगम्बर ग्रन्थकारोंके मध्य में वरांगचरित की यथेष्ट ख्याति थी । इस दिगन्तव्यापिनी ख्यातिके आधार पर यह कहा जा सकता है की जटिल कवि भी अधिक से अधिक सातवीं शताब्दिमें अवश्य हुए है + + + वरांगचरित की कुछ रचनाएं समन्तभद्र ( लगभग दूसरी शताब्दि ) और पूज्यपाद ( इ. सं. ५०० के लगभग ) की रचनाओंसे साम्य रखती हैं । जहांतक मैं जानता हूं किसी भी प्राचीन संग्रहमें जटिल या जटाचार्यका नाम मुझे नहीं दीख पडा + + + चामुण्डरायने नटासिंह नन्दीके नामसे वरांगचरित के कर्ताका उल्लेख किया है । + + + पार्श्वाभ्युदय के रचयिता जिनसेन जैसे गुणी पुरुषके द्वारा जटाचार्यके कवित्व या छटाकी सराहना किया जाना कोई मामूली बात नहि है । केवल इतना ही नहि, किन्तु जिनसेनने अपने ग्रन्थमें वरांगचरितका उपयोग भी किया है - आदिपुराण में azineरितके कुछ प्रसंगोंको अपने शब्दो में लिखा है। यद्यपि आदिपुराणके प्रथम परिच्छेदको अनुष्टुव छंद में लिखकर उन्होंने उसका ढांचा बदल दिया है, फिर भी बहुतसे शब्द मिलते जुलत हुए हैं । उदाहरण के लिए आदिपुराणके प्रथम परिच्छेद के १२२-२४, १२७ – ३०, १३९, १४३, १४४ नम्बर के श्लोकों की क्रमशः वरांगचरितके प्रथम परिच्छेद के ६-७, १०-११, १५-१६ और १४ नम्बर के श्लोकोंके साथ तुलना करना चाहिए । आदिपुराणके सम्बन्धमें जो बात कही गई है वही चामुण्डराय पुराण के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है + + घरांगचरित ही संस्कृतका प्रथम जैन काव्य है । " - मैनदर्शन, व. ४, अं. ६, पृ० २४२ से २५२ । मुझे खुशी है कि इन आचार्यांने श्वेतांबर साहित्यका ढांचा बदल कर महापुराणका निर्माण किया, और साथमें इन्साफ के लिये कतिपय श्वेताम्बर मान्यताओं को भी ज्यों की त्यों रहने दी । मैं लिखचुका हूं कि दिगम्बर समाज स्त्रीमुक्तिको मानता नहीं है, साथ साथ में स्त्रियोंके सम्यक चारित्रको भी मानता नहीं है। मगर प्राचीन जैन साहित्य में तो स्त्री- चारित्र के अनेक प्रमाण उपलब्ध होते हैं । अत इन आचार्य ने भी महापुराणमें श्रीदीक्षाके प्रसंग तथाप्राप्त ही वर्णित किए हैं, जैसे For Private And Personal Use Only

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