Book Title: Jain Sahitya me Shrikrishna Charit Author(s): Rajendramuni Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 9
________________ लेखकीय कर्मयोगी श्रीकृष्ण का पावन पुण्य स्मरण, उनकी मधुर स्मृतियाँ हमारे अन्तमनिस को आनन्द विभोर कर देती हैं। वे युगपुरुष थे। उनका जीवन क्षीरसागर की तरह विराट् है। चाहे बाल्यकाल लें, चाहे युवावस्था लें, चाहे वृद्धावस्था लें सर्वत्र मधुरता है, कत्र्तव्यनिष्ठा है। चाहे जैन परम्परा हो, चाहे वैदिक परम्परा हो, चाहे बौद्ध परम्परा हो, सभी ने उस महापुरुष के गुणों का उत्कीर्तन किया है । सत्य है कि महापुरुषों की जीवन-गाथा देशातीत और कालातीत होती है। वे व्यष्टि नहीं समष्टि होते हैं । उनका चिन्तन और जीवन विशाल होता है। उसमें 'स्व' और 'पर' का भेद नहीं होता। वे सबके होते हैं और सब उनके होते हैं । यही कारण है कि वे जन्मगत कुल-परम्परा से ऊपर उठकर 'वसुधैव कुटुम्बकं' के परिचायक बन जाते हैं । उनका जीवन सीमातीत होता है। वे सभी के लिए आदर्श होते हैं। उनकी जीवन गाथाओं को लिपिबद्ध करने का एक मात्र यही उद्देश्य होता है कि उनके उदात्त जीवन से मानव प्रेरणा प्राप्त करे। श्रीकृष्ण के जीवन के विविध-प्रसंग वैदिक परम्परा के साहित्य में विस्तार से चचित हैं। उनके बाल्यकाल को लेकर विपुल साहित्य निर्मित हुआ है। उनकी युवावस्था और रास लीला को लेकर विधि कवियों ने कमनीय कल्पना की तुलिका से उनका चित्रण किया है। वे राजनीति-विशारद हैं। महाभारत के युद्ध को टालने के. लिए शान्तिदूत बनकर जो उन्होंने प्रयास किये, वे आज भी प्रेरणाप्रद हैं। श्रीकृष्ण वैदिक परम्परा में विष्णु के अवतार के रूप में रहे हैं। पूर्ण कला का उनके जीवन में विकास हुआ है । वैदिक परम्परा के श्री कृष्ण के रूप से जन-मानस भली-भाँति परिचित है। जैन साहित्य में भी श्रीकृष्ण का निरूपण है । यह बात बहुत कम लोग जानते हैं। मेरे पूज्य गुरुदेव उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी ने 'भगवान अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्रीकृष्ण : एक अनुशीलन' ग्रन्थ में विस्तार के साथ सर्व प्रथम प्रकाश डाला। तब जन-मानस को ज्ञात हुआ कि जैन परम्परा में श्रीकृष्ण का गौरव पूर्ण स्थान है। साहित्यरत्न परीक्षा के पश्चात् जब महोपाध्याय परीक्षा देने हेतु विचार उबुद्ध हुआ तो मैंने जैन साहित्य में श्रीकृष्ण चरित्र पर शोध का कार्य प्रारम्भ किया । और, ज्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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