Book Title: Jain Sahitya me Shrikrishna Charit
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 11
________________ (ix) साध्वी दिव्यप्रभाजी का हार्दिक सहयोग भी मेरे साहित्य-लेखन के लिए सम्बल रूप प्राकृत भारती अकादमी के सचिव श्री देवेन्द्रराज जी सा० मेहता का आग्रह रहा कि प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन प्राकृत भारती के द्वारा हो । उनके स्नेह भरे आग्रह को सन्मान देकर प्रकाशन किया जा रहा है। प्रतिभामूर्ति महोपाध्याय विनयसागर जी ने बहुत ही श्रम से ग्रन्थ का प्रूफ संशोधन कर ग्रन्थ को सर्वाधिक सुन्दर बनाने का प्रयास किया है, अतः उनके प्रति मैं हार्दिक आभार प्रकट करता है। ग्रन्थ का अधिकाधिक प्रचार हो इस दृष्टि से श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, उदयपुर का सहयोग भी इसके प्रकाशन में रहा है। ज्ञात और अज्ञात रूप में जिन-जिन के ग्रन्थों का तथा लेखों का मैंने उपयोग किया है उन सभी के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ । आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है यह शोध प्रबन्ध प्रबुद्ध पाठकों को रुचिकर लगेगा। जैन साहित्यकार विराट और उदात्त विचारों के धनी थे। उन्होंने विपुल परिमाण में विविध भाषाओं और विविध विषयों में साहित्य का सृजन किया है। सम्प्रदायवाद, प्रान्तवाद और भाषावाद से ऊपर उठकर सत्य तथ्य को उजागर किया है। ऐसे उन सभी प्राचीन साहित्यकारों का मैं उपकृत हूँ। मैं आशा करता हूँ यह ग्रन्थ शोधार्थियों के लिए मील के पत्थर की तरह उपयोगी होगा। जैन स्थानक पाली, ५ जनवरी १९६१ राजेन्द्र मुनि 'शास्त्री' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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