Book Title: Jain Purano Me Varnit Prachin Bharatiya Abhushan
Author(s): Deviprasad Mishr
Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf

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Page 3
________________ १३० जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन २५ पद्मराग मणि २२, मरकतमणि, पद्मरागमणि २४, जातञ्जन र ५ ( कृष्णमणि), (कालमणि), हैम ७ (पीतमणि) आदि आभूषण बनाने के लिए उक्त मणियों का प्रयोग करते थे । आभूषणों के प्रकार एवं स्वरूप नर-नारी दोनों ही आभूषण- प्रेमी होते थे । इनके आभूषणों में प्रायः साम्यता है । कुण्डल, हार, अंगद, वलय, मुद्रिकादि आभूषण स्त्री-पुरुष दोनों ही धारण करते थे । शिखामणि, किरीट एवं मुकुट पुरुषों के प्रमुख आभूषण थे । शरीर के अंगानुसार पृथक्-पृथक् आभूषण धारण किया करते थे । इनका विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है 1 (अ) शिरोभूषण - सिर को विभूषित करने वाले आभरणों में प्रमुख मुकुट, किरीट, सीमन्तकमणि, छत्र, शेखर, चूणामणि, पट्ट आदि हैं । महापुराण के अनुसार सिन्दूर से तिलक भी लगाते थे । २८ ६ १. किरीट - चक्रवर्ती एवं बड़े सम्राट् ही इसको धारण करते थे । इसका निर्माण स्वर्ण से होता था । यह प्रभावशाली सम्राटों की महत्ता का सूचक था । ० २. किरोटी - महापुराण में इसका वर्णन है । स्वर्ण और मणियों द्वारा किरीटी निर्मित होती थी । किरीट से यह छोटा होता था । स्त्री-पुरुष दोनों ही इसको धारण करते थे । ३. चूड़ामणि ३१ – पद्मपुराण में चूड़ामणि के लिए मूर्ध्निरत्न का प्रयोग मिलता है । राजाओं एवं सामन्तों द्वारा इसका प्रयोग किया जाता था । चूड़ामणि के मध्य में मणि का होना अनिवार्य था । महापुराण में चूड़ामणि के साथ चूड़ारत्न भी व्यवहृत हुआ है । इन दोनों में अलंकरण की दृष्टि से साम्यता थी किन्तु भेद मात्र २७. वही, ७७२ । २८. महा, ६८।२०५ । २२. वही, १३।१५४, पद्म, ८०।७५ । २४. वही, १३ १३६, वही २९ । २६. हरिवंश, ७७२ । २९. वही, ६८ ६५०; ११।१३३, पद्म, ११८।४७ तुलनीय - रघुवंश, १०।७५ । ३०. वही, ३।७८ । ३१. पद्म, ३६।७; महा १।४४, ४९४, १४१८, हरिवंश, ११।१३ । ३२. वही, ७१।६५ । ३३. महा, २९।१६७; तुलनीय कुमारसम्भव, ६।८१ रघुवंश १७ २८ । परिसंवाद-४ Jain Education International २३. वही, १३।१३८; हरिवंश २११० । २५. हरिवंश, ७७ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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