Book Title: Jain Purano Me Varnit Prachin Bharatiya Abhushan
Author(s): Deviprasad Mishr
Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf

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Page 11
________________ १३८ जैनविद्या एवं प्राकृतं : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन भुजा के ऊपरी छोर को सुशोभित करे उसे केयूर कहते हैं और 'अंगं दयते अंगदम्' अर्थात् जो अंग को निपीड़ित करे वह अंगद होता है। ०२ । २. केयर ?-स्त्री-पुरुष दोनों ही अपनी भुजाओं पर केयूर अंगद या केयूर) धारण करते थे' । केयूर स्वर्ण एवं रजत के बनते थे। जिस पर लोग अपने स्तर के अनुसार मणियाँ भी जड़वाते थे। हेम केयूर का भी वर्णन कई स्थलों पर हुआ है। केयर में नोक भी होती थी। ०५। भर्तृहरि ने केयूर का प्रयोग पुरुषों के अलंकार के अन्तर्गत किया है।०६। ३. मुद्रिका-हाथ की अंगुली में धारण करने का आभूषण मुद्रिका है। इसका प्रयोग स्त्री-पुरुष समान रूप से करते हैं। प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में स्वर्णजटित, रत्नजटित, पशु-पक्षी, देवता-मनुष्य एवं नामोत्कीर्ण मुद्रिका का उल्लेख है।०७ । पद्मपुराण में अंगूठी के लिए उमिका शब्द प्रयुक्त हुआ है . ८ । त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित में स्त्री के आभूषण के रूप में अंगूठी का वर्णन है।०५।। ४. कटक११ -प्राचीन काल से हाथ में स्वर्ण, रजत, हाथी दाँत एवं शंखनिर्मित कटक धारण करने का प्रचलन था। इसका प्रयोग स्त्री-पुरुष दोनों ही करते थे । रत्नजटित चमकीले कड़े के लिए दिव्य कटक शब्द का प्रयोग महापुराण में हुआ है।११। हर्षचरित में कटक और केयूर दोनों का वर्णन आया है।१२। वासुदेवशरण १०२. द्रष्टव्य, गोकुलचन्द्र जैन-यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १४७ । १०३. महा. ६८।६५२, ३।१५७, ९।४१, १५।१९९, हरिवंश, ७।८९, पद्म ३।२, ३।१९०, ८१४१५, ११।३२८, ८५।१०७, ८८३३१ रघुवंश, ७.५० ।। १०४. नरेन्द्र देव सिंह-भारतीय संस्कृति का इतिहास, पृ० ११५ । १०५. रघुवंश, ७५० । १०६. भर्तृहरिशतक, २.१९ । १०७. हरिवंश, ४९।११, महा, ७।२३५, ४७।२१९, ५९।१६७, ६८॥३६७ । १०८. पद्म, ३३।१३१, तुलनीय रघुवंश, ६-१८ । १०९. ए० के० मजूमदार-चालुक्याज ऑफ गुजरात, पृ० ३५९ पर उद्धृत । ११०. पद्म ३।३; हरिवंश, ११।११; महा, ७।२३५, १४।१२, १६।२३६, तुलनीय मालविकाग्निमित्रम्, अंक २, पृ० २८६ । १११. महा, २९।१६७ । ११२. वासुदेवशरण अग्रवाल, हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १७६ । परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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