Book Title: Jain Parampara me Kashi Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Rajendrasuri_Janma_Sardh_Shatabdi_Granth_012039.pdf View full book textPage 1
________________ साध्वारत्न पु मिनन्दन ग्रन्थ जैन परम्परा में काशी - डा. सागरमल जैन (१) जैन परम्परा में प्राचीनकाल से ही काशी का महत्वपूर्ण स्थान माना जाता रहा है । उसे चार तीर्थकरों की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है । जैन परम्परा के अनुसार सुपार्श्व चन्द्रप्रभ, श्रेयांस और पार्श्व की जन्मभूमि माना गया है। अयोध्या के पश्चात् अनेक तीर्थंकरों की जन्मभूमि माने जाने का गौरव केवल वाराणसी को हो प्राप्त है । सुपार्श्व और पार्श्व का जन्म वाराणसी में, चन्द्रप्रभ का जन्म चन्द्रपुरी में, जो कि वाराणसी से १५ किलोमीटर पूर्व में गंगा किनारे स्थित है, और श्रेयांस का जन्म सिहपुरी - वर्तमान सारनाथ में माना जाता है । यद्यपि इसमें तीन तीर्थंकर प्राक् ऐतिहासिक काल के हैं किन्तु पार्श्व की ऐतिहासिकता को अमान्य नहीं किया जा सकता है - ऋषिभाषित ( ई० पू० तीसरी शताब्दी) ' आचारांग (द्वितीय - श्रुत स्कन्ध ) " भगवती, उत्तराध्ययन' और कल्पसूत्र (लगभग प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व)" में पार्श्व के उल्लेख हैं । कल्पसूत्र और अन्य जैनागमों में उन्हें पुरुषादानीय" कहा गया है । अंगुत्तरनिकाय में पुरुषाजानीय ' शब्द आया है । वाराणसी के राजा अश्वसेन का पुत्र बताया गया है तथा उनका काल ई० पू० नवीं-आठवीं शताब्दी माना गया है। अश्वसेन की पहचान पुराणों में उल्लेखित हर्यश्व से की जा सकती है ।" पार्श्व के समकालीन अनेक व्यक्तित्व वाराणसी से जुड़े हुए हैं । आर्यदत्त उनके प्रमुख शिष्य थे । 1° पुष्पचूला प्रधान आर्या थी ।" सुव्रत प्रमुख अनेक गृहस्थ उपासक और सुनन्दा प्रमुख अनेक गृहस्थ उपासकायें उनकी अनुयायी थीं । उनके प्रमुख गणधरों में सोम का उल्लेख हैसोमवाराणसी के विद्वान् ब्राह्मण के पुत्र थे । 14 सोम का उल्लेख ऋषिभाषित में भी है।" जैन परम्परा में पार्श्वनाथ के आठ गण और आठ गणधर माने गये हैं ।" मोतीचन्द्र ने जो चार गण और चार गणधरों का उल्लेख किया है वह भ्रान्त एवं निराधार है । " वाराणसी में पार्श्व और कमठ तापस के विवाद की चर्चा जैन कथा साहित्य में है ।18 बौधायन धर्मसूत्र से 'पारशवः' शब्द है, सम्भवतः उसका सम्बन्ध पार्श्व के अनुयायियों से हो यद्यपि मूल प्रसंग वर्णशंकर का है । 1 पार्श्व के समीप इला, सतेश, सौदामिनी, इन्द्रा, धन्ना, विद्य ता आदि वाराणसी की श्रेष्ठि पुत्रियों के दीक्षित होने का उल्लेख ज्ञाता धर्मकथा ( ईसा की प्रथम शती) में है | 20 उत्तराध्ययन काशीराज के दीक्षित होने की सूचना देता है । 22 काशीराज का उल्लेख महावग्ग व महाभारत में भी उपलब्ध है । अन्तकृतुदशांग से काशी के राजा अलक्ष/अलर्क (अलक्ख) के महावीर के पास दीक्षित होने की सूचना मिलती है । 2 अलर्क का काशी के राजा के रूप में २२२ | पंचम खण्ड : सांस्कृतिक सम्पदा www.iPage Navigation
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