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तुं परमात्मा छे, तुं शुद्ध छे, तुं बुद्ध छे, तुं निरंजन छे, तुं ज स्वयं महावीर छे. तुं महावीरनो एकवार बनी जा तो तुं पोते ज तने महावीर बनेलो जोईश. तुं स्व विनानी पंचात मूकी दे. स्वमां आनंदवहेण छे, परमां दुःखना खारा दरिया छे."
तारा आत्मामां निर्मळता भरी पडी हे. सोनामां माटी भळे अने स-मळ बने एम तारा आत्मामां कर्मोए कचरो भरी मूक्यो छे. एटले निर्मळ आत्मा स-मळ बनी गयो छे. ओ आत्मन् ! तुं जाग. तुं ऊभो था. तुं तारा आत्माने ओळख. स- मळमांथी निर्मळ वन तारी अवस्था त्रिगुणातीत अने ज्ञानादि गुण सहित छे. तुं जाग अने तने ओळख. तारो स्वभाव सच्चिदानंदमय छे. तुं पोते परंज्योति छे, महाज्योति छे, परात् परतर छे. आनंदनो उदधि तारामां छलकाय छे. तुं एनो आस्वाद कर. बीजे बधे अज्ञान छे, अविद्या छे. दुःख छे, अन्धकार छे. ए वे स्वाद छे.
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आवो आत्म शब्दनो झंकार आ ग्रंथरत्नमां मधुकरना गुंजननी जेम गुंजन करतो संभळाय छे. साथे साथे व्यवहार नयनी उपादेयता अने एना विषयोनुं उद्बोधन पण सरस कंडारेलुं छे. बीजा शब्दमां कहीए तो आ ग्रन्थरत्न निश्चय अने व्यवहार एम बने नयोने प्रतिबिंबित करे छे. सुसूक्ष्म बुद्धिथी नयसापेक्षनीतिमय दृष्टि राखी आ ग्रन्थरत्न वांचवामां आवशे तोज यथातथ्य वस्तुनुं ज्ञान थई शकशे नयसापेक्षता राखवामां नहि आवे तो अर्थनो अनर्थ के विपरीत अर्थ पण थई जवा पूर्ण संभावना छे.
कोई पण पदार्थने मूळ स्वरुपमां ओळखवो होय तो ए माटे सापेक्षवादनुं नयाश्रितज्ञान अत्यन्त अगत्यनुं छे. ए विनानुं ज्ञान पंगुज्ञान गणाय. नयवादमां कोई एकज नय सर्व प्रधान छे एवं अटल नियमन नथी, पण सर्व नयो पोतपोतानी मर्यादा प्रमाणे पोताना स्थळे प्राधान्य गुण धरावता होय छे. एक नय एक स्थळे प्राधान्य धरावतो होय अने एज नय अन्य स्थळे अप्रधान बनीं जतो होय छे. संयोगोना परावर्तननी साधे सर्व नयोनी प्रधानता
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