Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 06
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 5
________________ प्रस्तावना. - per- सुज्ञ जनोनी सुरूपाथी आ "जैनकथारत्नकोष” नामना पुस्तकनो बहो नाग बंपाइ तैयार थयो , आ नागंमा मात्र एक गौतम कुलकनामक नानुं सर वीश गाथानुज प्रकरण ब्राप्यु डे, तेनी एकेकी गाथामां घj करी चार चार उपदेशो दाखल करेला बे,अने प्रत्येक उपदेश उपर दृष्टां तरूपें एकेकी अथवा बब्बे कथा कहीने ग्रंथनुं गौरव कयुं . सर्वे म तीने या ग्रंथमा एकसो अगियार कथा आवेली , ते सर्व कथाघणी सरस अने नवनवा उपदेश संबंधि स्वरूपनो निर्णय करनारी होवाथी वांचनारा साहेबोना चित्तने कांक अपूर्व थानंदना अंकूरोने प्रगट करनारी . तेमज वली ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप रत्नत्रयीमां स्थिरता कराव नारी. तथा ए कथाउनां वाचकवंद जेम परमपद साधन करवामां.कु शल थशे, तेमज संसार व्यवहारमा रह्या थका नीतिमां एवा निपुण थशे के ते जनने दुष्कृत कार्य करवानी बुद्धि तो स्वप्नमां पण थाशे नहीं. घj गुं लखीयें परंतु या ग्रंथ वांचनार पुरुष अत्यंत दृढतर न्यायवान थशे. एवी अत्युत्तमोत्तम बोध करनारी कथा था ग्रंथमां आवेली . __ था बहो नाग बापतां पूर्व नागमा लख्या मुजब दृष्टिदोष अथवा प्रमा ददोषथी सुझजनोने अगुक्ता दीनामां आवे, तो ते संबंधी जे कां मुज ने दोष लाग्या होय, ते सर्व दोषोनी या ग्रंथसंबंधी नवनवा प्रकारना विनोद उपजावनारी कथाउने, वांचनारा समदृष्टि सङनोनी समक्ष हूं सविनय माफी माएं बुं. __ या ज्ञानवृधिना प्रनावथी, अथवा तो श्रीसंघना अतिशय माहात्म्य थी, अथवा तो मुंबानगरीना हालमां थता महोदयना महत्त्वनी धाक र्षण शक्तिथी, वा अत्रत्य श्रावक समुदायना पुण्योदयथी सादात् पूर्वे था गयेला गुरुश्री आर्यमहागिरिजी महाराज जेवा महोटा प्रानाविक अने साधुसंबंधी शुक्समाचारीमा प्रवृत्ति करनारा अने जेमणे पाषाण अने सु वर्ण, मान अने अपमान, वंदक अने निंदक, शत्रु अने मित्र, तृण अने मणि, राजा अने रंक, ए सर्वनी उपर समनावें दृष्टि स्थापन करेली .

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