Book Title: Jain Jyotish Pragati aur Parampara
Author(s): Rajendraprasad Bhatnagar
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
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जैन ज्योतिष : प्रगति और परम्परा
साणस्य (श्वानरुत ) – अज्ञातकर्तृक । इसमें कुत्ते की विभिन्न आवाजों के आधार पर गमन-आगमनजीवित-मरण आदि का वर्णन है ।
सिद्धादेश - अज्ञातकर्तृक । इसमें वर्षा, वायु, विद्युत के शुभाशुभ फल दिये हैं ।
उपस्सुइदार ( उपश्रुतिद्वार) - अज्ञातकर्तृक । इसमें सुने शब्दों के आधार पर शुभाशुभ फल दिये हैं । छायादार (छायाद्वार) – अज्ञातकर्तृक । छाया के आधार पर शुभाशुभ फल दिये हैं ।
नाडीदार (नाडीद्वार) – अज्ञातकर्तृक । इडा पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों के विषय में वर्णन है ।
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निमित्तदार ( निमित्तद्वार) – अज्ञातकर्तृक । निमित्तों का वर्णन है ।
रिट्ठदार (रिष्टद्वार ) -- अज्ञातकर्तृक । जीवन-मरण का फलादेश है ।
पिपीलियानाण ( पिपीलिकाज्ञान ) - अज्ञातकर्तृक । चींटियों की गति देखकर शुभाशुभ फल बताये हैं । प्रणष्टलाभादि --- अज्ञातकर्ता के । प्राकृत में । गतवस्तुलाभ, बन्ध-मुक्ति, रोग, जीवन-मरण का विचार है । नाडीविज्ञान-अज्ञातकर्तृक । संस्कृत में । नाडियों की गति से शुभाशुभ फल दिये हैं ।
नाडी विधार (नाडीविवार) – अज्ञातकतुक प्राकृत में
कार्यानुसार दायी या बायीं नाड़ी के शुभाशुभ फल
बताये हैं ।
मेघमाला- -अज्ञातकर्तृक । प्राकृत में । नक्षत्रों के आधार पर वर्षा के चिह्नों और उनके शुभाशुभ फल बताये हैं।
ठीकविचार - अज्ञातकर्तृक प्राकृत में छींक के शुभाशुभ फल दिये हैं।
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लोकविजय तंत्र - अज्ञातकर्तृक । प्राकृत में । सुभिक्ष और दुर्भिक्ष का विचार है। ध्रुवों के आधार पर शुभाशुभ फल दिये हैं ।
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सुविचार (स्वप्नद्वार) – अज्ञातकर्तुं क प्राकृत में स्वप्नों के शुभाशुभ फल दिये हैं। सुमिणसत्तरिया (स्वप्नसप्ततिका) — अज्ञातकर्तृक । प्राकृत में
स्वप्न के सम्बन्ध में विस्तृत विवेचन है। इस पर जैसलमेर में सं० १२८७ (१२३० ई०) में खरतरगच्छीय सर्वदेवसूरि ने वृत्ति की रचना की है। जिनपासगणि— इन्होंने सुविणविचार नामक स्वप्नशास्त्र सम्बन्धी अन्य ८५ गाथाओं में लिखा है।
जगदेव ( ११वीं शती) - यह गुजरात के राजा कुमारपाल के मंत्री दुर्लभराज का पुत्र था । पिता-पुत्र को इस राजा का आश्रय प्राप्त था । इनका स्वप्नशास्त्र ग्रन्थ है ।
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वर्धमानसूरि – यह रुद्रपल्लीय गच्छ के मुनि थे । इन्होंने स्वप्नों के सम्बन्ध में स्वप्नप्रदीप या स्वप्नविचार ग्रन्थ लिखा है। इसमें ४ 'उद्योग' हैं- दैवतस्वप्न, द्वासप्ततिमहास्वप्न, शुभस्वप्न, अशुभस्वप्न ।
वर्धमानसूर (११वीं शती) यह आचार्य अभयदेवसूरि (सं० १९२०) के शिष्य थे। इनका शकुनशास्त्र पर शकुन रत्नावलि कथाकोश नामक ग्रन्थ है ।
आचार्य हेमचन्द्रसूरि (१२वीं शती) - इनका शकुन सम्बन्धी शकुनावलि ग्रन्थ प्राप्त है ।
जिनदत्तसूरि (१२१३ ई० ) - वायडगच्छीय जैन मुनि थे, इन्होंने सं० १२७० में विवेकविलास की रचना की थी । शकुनशास्त्र पर इन्होंने शकुनरहस्य संस्कृत पद्यों में ग्रन्थ लिखा है । इसमें 8 प्रस्ताव हैं ।
सउणदार (शकुनद्वार) – अज्ञातकर्तृक ।
माणिक्यसूरि (१२८१ ई० ) - इन्होंने सं० १३३८ में शकुनशास्त्र या शकुनसारोद्धार ग्रन्थ लिखा है । पार्श्वचन्द्र आचार्य चंद्रसूरि के शिष्य थे। इन्होंने निमित्तशास्त्र पर हस्तकांड ग्रन्थ की रचना की है। इसमें
सो पद्य हैं ।
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