Book Title: Jain Jyotish Pragati aur Parampara Author(s): Rajendraprasad Bhatnagar Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 1
________________ जैन ज्योतिषः प्रगति और परम्परा - डॉ. राजेन्द्र प्रकाश भटनागर, [प्राध्यापक, राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, उदयपुर (राज.)] भारतीय ज्योतिष एक अत्यन्त प्राचीन शास्त्र है। 'तत्त्वार्थ' (अ०४, सू०१३) में लिखा है----'ज्योतिष्काः सर्यश्चन्द्रमसौ प्रहनक्षत्रप्रकीर्णकतारकाश्च'। सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्रों के साथ प्रकीर्णक तारों को ज्योतिष्क (चमकने वाले प्रकाशमान) कहते हैं। इनसे सम्बन्धित शास्त्र या विज्ञान को 'ज्योतिष' कहते है (ज्योतिषां सूर्यादिग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्)। ज्योतिषशास्त्र भारतीयों का मौलिक विशिष्ट विज्ञान है । डा० नेमिचन्द शास्त्री ने लिखा है-"यदि पक्षपात छोड़कर विचार किया जाय तो मालूम हो जायगा कि अन्य शास्त्रों के समान भारतीय ही इस शास्त्र के आदि आविकर्ता है।" (भारतीय ज्योतिष, पृष्ठ ३१)। ज्योतिष का आधार अंकज्ञान है। यह ज्ञान भी भारतीयों का मौलिक है । डा० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का मत है-"भारत ने अन्य देशवासियों को जो अनेक बातें सिखाई, उनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान अंकविद्या का है । संसारभर में गणित, ज्योतिष, विज्ञान आदि की जो उन्नति पायी जाती है, उसका मूल कारण वर्तमान अंकक्रम है, जिसमें एक से नौ तक के अंक और शून्य इन दस चिह्नों से अंकविद्या का सारा काम चल रहा है। यह क्रम भारतवासियों ने ही निकाला और इसे संसार ने अपनाया।" (मध्यकालीन भारतीय संस्कृति, पृ० १०८)। अलबेरुनी भी लिखता है--"ज्योतिषशास्त्र में हिन्दू लोग संसार की सभी जातियों से बढ़कर हैं । मैंने अनेक भाषाओं के अंकों के नाम सीखे हैं, पर किसी जाति में भी हजार से आगे की संख्या के लिए मुझे कोई नाम नहीं मिला। हिन्दुओं में अठारह अंकों तक की संख्या के लिए नाम हैं, जिनमें अन्तिम संख्या का नाम पराद्धं बताया गया है" (सचाऊ. अलबेरुनीज इण्डिया, जिल्द १, पृ० १७४-७७)। भारतीय ज्योतिष की दो परम्पराएँ रही हैं-वैदिक ज्योतिष और जैन ज्योतिष । दोनों परम्पराएँ बहत प्राचीन और प्रायः समानान्तर हैं । दोनों का परस्पर एक-दूसरे पर प्रभाव भी पड़ा है। .... वैदिक परम्परा में ज्योतिष का स्थान महत्त्वपूर्ण है । इसे छः वेदांगों में परिगणित किया गया है। ये वेदांग हैं-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष । शिक्षा कल्पोऽथ व्याकरणं निरुक्तं छन्द सा च यः । ज्योतिषामयनं चैब वेदांगानि षडेव तु ॥ यज्ञों के अनुष्ठान के लिए, उसके आरम्भ और समाप्ति पर अनुकूल ग्रह योग देखा जाता था। इसका ज्ञान ज्योतिष पर आधारित है। वैदिक ज्योतिष सम्बन्धी 'वेदांग ज्योतिष' नामक प्राचीन लघुग्रन्थ उपलब्ध है। इसकी रचना लोकमान्य तिलक ने १२०० से १४०० ई० पू० मानी है। इसका लेखक अज्ञात है। इस ग्रन्थ के दो पाठ मिलते हैं-ऋग्वेद ज्योतिष और यजुर्वेद ज्योतिष । पहले में ३६ श्लोक और दूसरे में ४४ श्लोक हैं। इस पर अनेक टीकाएँ विद्यमान हैं । यह ग्रन्थ वैदिक ज्योतिषशास्त्र का मूल माना जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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