Book Title: Jain Jyotish Pragati aur Parampara
Author(s): Rajendraprasad Bhatnagar
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 16
________________ जैन ज्योतिष : प्रगति और परम्परा ४०७ . ........... . ................ ............ . .... . .. .. . ... . . . . ..... लक्ष्मीवल्लभ उपाध्याय (१६८४ ई.)--ये खरतरगच्छीय लक्ष्मीकीति के शिष्य थे। इन्होंने सं० १७४१ में शंभुनाथकृत 'कालज्ञान' का पद्यमय भाषानुवाद कालज्ञानभाषा किया है। ज्ञानभूषण (१६९३ ई०)- इन्होंने सं० १७५० (१६६३ ई.) में ज्योतिष पर ज्योतिप्रकाश ग्रन्थ लिखा है। दूसरा ग्रन्थ खेटचूला है। यह भी ज्योतिष पर है। लब्धिचंद्रगणि (१६६४ ई०)-यह खरतरगच्छीय मुनि कल्याणनिधान के शिष्य थे। इनके ज्योतिष पर दो ग्रन्थ हैं१. जन्मपत्रीपद्धति-रचना सं० १७५१ २. लालचन्दीयपद्धति-जातक सम्बन्धी ग्रन्थ है। यशस्वतसागर (१७०३ ई.)-इनका अन्य नाम जसवंतसागर था। यह चारित्रसागर के शिष्य कल्याणसागर के शिष्य थे। ये राजस्थान के निवासी थे । ज्योतिष, न्याय, व्याकरण और दर्शन के विद्वान थे । ज्योतिष पर इनके ये ग्रन्थ हैं (१) ग्रहलाघव-वातिक-रचना सं० १७६० (१७०३ ई०) है। गणेशकृत 'ग्रहलाघव' का टीका। (२) यशोराजीपद्धति-रचना सं० १७६२ (१७०५ ई०)। यह जन्मकुण्डली सम्बन्धी व्यावहारिक ग्रन्थ है। लक्ष्मीचंद (१७०३ ई०)-यह पार्श्वचंद्रगच्छीय जगच्चद्र के शिष्य थे। इन्होंने सं० १७६० (१७०३ ई०) में ज्योतिष पर गणसारणी ग्रन्थ लिखा है। इसमें तिथि, नक्षत्र आदि की गणनाएँ दी हैं। जयधर्म (१७०५) ई०-यह जैन यति पं० लक्ष्मीचंद के शिष्य थे। इन्होंने सं० १७६२ (१७०५ ई.) में पानीपत में हिन्दी पद्यों में शकुनप्रदीप की रचना की है। लक्ष्मी विनय (१७१० ई०)-यह खरतरगच्छीय अभयमाणिक्य के शिष्य थे। इन्होंने पद्मप्रभसूरिकृत भवनदीपक पर सं० १७६७ (१७१० ई०) में बालावबोध टीका लिखी है। लक्ष्मीविजय (१७१० ई०)--यह खरतरगच्छीय मुनि थे। इन्होंने हरिभद्र कृत 'भुवनदीपक' पर सं० १७६७ (१७१० ई०) में टीका लिखी है। बाघजी मुनि (१७२६ ई.)-यह पार्श्वचंद्रगच्छीय शाखा के जैन यति थे। इनका काल सं० १७८३ (१७२६ ई०) है। इनके ज्योतिष पर तिथिसारणी आदि तीन-चार ग्रन्थ मिलते हैं । लब्धोदय (१८वीं शती)--यह खरतरगच्छीय ज्ञानराज के शिष्य थे । इन्होंने होरावबोध लिखा है। रत्नजय (१८वीं शती)—यह खरतरगच्छीय रत्नराजगणि के शिष्य थे। इन्होंने जन्मपत्रीपद्धति ग्रन्थ लिखा है। पुण्यतिलक (१८वीं शती)-यह खरतरगच्छीय हर्षनिधान के शिष्य थे। ज्योतिष पर इन्होंने ग्रहायुः ग्रन्थ लिखा है। 'नरपतिजयचर्या' (निमित्तग्रन्थ) पर टीका भी लिखी है। जिनोदयसरि (१८वीं शती)--यह बेगड़गच्छीय जिनोदयसूरि के शिष्य थे। इन्होंने उदयविलास नामक ज्योतिष ग्रन्थ लिखा है। जिनोवयसरि (१८वीं शती)-यह खरतरगच्छीय मुनि थे । इन्होंने १५० श्लोकों में विवाह रत्न की रचना की है। मुनि अमर (१८वीं शती)-यह खरतरगच्छीय मुनि सोमसुन्दर के शिष्य थे। इन्होंने विवाहपटल पर बालावबोध टीका लिखी है। रामविजय उपाध्याय (१७४४ ई०)-यह खरतरगच्छीय दयासिंह के शिष्य थे। इन्होंने सं० १८०१ .(१७४४ ई०) में मुहर्तमणिमाला की रचना की है । विवाहपटल पर भी भाषा टीका लिखी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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