Book Title: Jain Journal 1977 07 Author(s): Jain Bhawan Publication Publisher: Jain Bhawan PublicationPage 48
________________ -जैन जर्नल के सम्पादक श्री को अभिनन्दन कितने ही वर्ष पूर्व कलकत्ता में 'जैन भवन' नामक एक संस्था स्थापित हुयी थी। यह संस्था जैन विद्या, जैन संस्कृति से सम्बन्धित भिन्न-भिन्न विषयों की आधारभूत सामग्री प्रकाशित करने की दिशा में लघुकाय किन्तु, ठोस रूप में किसी भी प्रकार की विशेष प्रसिद्धि के मोह से आकर्षित हये बिना शान्त और उत्तम कार्य कर रही है। जिसने देश विदेश के जैन विद्या प्रेमी विद्वानों का स्नेह और प्रशंसा भी प्राप्त की है। यह सस्था अपनी कार्यवाही नियमित व्यवस्थित एवं रचनात्मक रूप में चलाती रहे और उसका परिणाम जैन विद्या के विद्वानों तथा जिज्ञासुओं के समक्ष आता रहे, साथ ही जैन विद्या के विभिन्न अंगो के अभ्यासी विद्वानों की विद्वता और शोध का लाभ जैन संस्कृति के इच्छुक, एवं अभ्यासियों को मिलता रहे, इसीलिये “जैन जर्नल" नामक त्रैमासिक प्रारम्भ किया है। यह त्रैमासिक अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होता है। इसके सम्पादक 'श्री गणेश जी ललवानी' हैं। इसका वार्षिक शुल्क मात्र पाँच रूपया है। उसमें भी तीन वर्ष का शुल्क केवल बारह रूपये ही लिए जाते हैं। इसका पता है-जैन जर्नल, पी-२५ कलाकार स्ट्रीट, कलकत्ता-७ । इस त्रैमासिक में उच्च कोटि का कागज व्यवहृत होता है एवं मुद्रण कार्य भी स्वच्छ सुधड़ और शुद्धता पूर्वक किया जाता है जो कि नयनाभिराम एवं मनोहर है । तदुपरान्त, बढ़िया आर्ट पेपर पर जैन इतिहास, साहित्य, पुरातत्व और कला से सम्बन्धित प्राचीन कृतियों के इकरंगे और बहुरंगे चित्र भी प्रकाशित किये जाते हैं। इन सभी कार्यों को देखते हुये कहना पड़ता है कि वास्तव में 'जैन जर्नल' जैन विद्या से सम्बन्धित एक आदर्श सामयिक त्रैमासिक है। इस पत्र ने जैन विद्या की संशोधन विषयक कमी की भी पर्याप्त अंशों में पूति एवं मूल्यवान सेवा की है, कर रहा है जो कि हम सभी के लिए अभिनन्दन योग्य एवं दूसरों के लिए उदाहरण स्वरूप है। इस जर्नल का इतना सुन्दर रूप रंग और उसमें प्रकाशित होने वाली उत्तम प्रकार की लेख सामग्री, चित्र सामग्री देखकर स्वाभाविक रूप से एक प्रश्न सम्मुख आता है कि छपाई, कागज, बाईडिंग, ब्लाक, आदि के भावों में दिनोंदिन वृद्धि होने पर भी जैन भवन को यह त्रैमासिक मात्र ५) बार्षिक (तीन वर्ष के लिये १२) अल्प शुल्क में कैसे पोषाता होगा? उत्तर स्पष्ट है कि जैन भवन के संचालक महानुभाव इस त्रैमासिक के माध्यम से जैन विद्या की उल्लेखनीय भावना को सफल बनाने के हेतु पर्याप्त आर्थिक क्षति उठाते होंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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