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अङ्क ५]
विविध प्रसङ्ग।
कहते थे । कुछ विद्वानोंने पता लगाया है उन्हींसे इसे ग्रहण किया है । इसीसे उनमें असकि स्वयं भगवान महावीरके पिता एक गणतंत्रके हिष्णुताका प्रवेश हुआ है। ठाकुर या प्रेसीडेण्ट थे ।
___ सर ओयफेड लायलने अपनी एक पुस्तकमें ऐसा जान पडता है कि सोशियालिज्म या लिखा है कि धर्मका फैलाव ऐसे चुपचाप ढंगसे बोल्शेविज्म आदि सिद्धान्त पुराने जैन बौद्ध होना चाहिए जिसे लोग जान भी न पावें । आदि सिद्धान्तोंके ही वर्तमान देशकालानुरूप
दूसरे सम्प्रदायोंके समान आर्यसमाजने भी अवतार हैं-उन्हींके रूपान्तर हैं।
हालमें एक सम्प्रदग्यका रूप धारण कर लिया है।
यदि कोई पूछे कि जिसे लोग जान भी न सकें ३ धर्मप्रचारके सम्बन्धमें ऐसे चपचाप धर्मप्रचार कैसे हो सकता है ?
गाँधीजीके विचार। तो इसका उत्तर प्रकृतिसे मिलेगा। अहमदाबाद-आर्यसमाजके वार्षिक महोत्स- प्रकृतिकी लीला देखिए । एक वृक्षके विषयमें वमें ता० १२ जनवरीको महात्मा गाँधीने एक विचार कीजिए। क्या आप देख सकते है कि छोटासा परन्तु महत्त्वपूर्ण व्याख्यान दिया था। वह किस प्रकार बढ़ता है ? आप अपने शरीर के उसमें आर्यसमाजके सम्बन्धमें कई बातें बड़े अवयवांका विकास बिना किसी प्रकारकी उछल मार्केकी कही थीं। नीचे उनका सारांश दिया
कूदके भी अनुभव कर सकते हैं। इसी तरह जाता है:--
धर्मका विकास भी अनुभव किया जा सकता है।
शुद्ध धर्ममें असहिष्णुताको स्थान नहीं है । ___“ आर्यसमाजके आधुनिक आन्दोलनमें मुझे ।
नम मुझ उसमें जो गुण हैं वे दूसरोंमें नहीं हैं। हिंसा दो बडी भारी त्रुटियाँ खास तौरसे मालूम हुई और मारकाटसे हिन्दू धर्म निराला है-सुरक्षित हैं । एक तो असहिष्णुता जिसे अंगरेजीमें
जाम है। दूसरे धर्म ऐसे नहीं रहे । यह धर्मद्वेषसे 'इनटोलरेशन' कहते हैं। मैं यह नहीं कहता ,
। जुदा है। हिन्दूधर्ममें भी समशेरें चली हैं और कि यह दोष केवल आर्यसमाजमें ही है, परन्तु . इतना तो सच है कि वर्तमान पवन-प्रवाहम की उपयोगिताकी हद हो गई है। आर्यसमाज सबसे अधिक बहा जा रहा है। आर्यसमाजकी दूसरी कमी जिह्वापर
जिस धर्मप्रचारमें असहिष्णुताका प्रभाव है, अधिकार न रखना है। आजकल तलवारवह सच्चा धर्मप्रचार नहीं है और वह बहुत की अपेक्षा जीभका उपयोग विशेष होता समय तक टिक भी नहीं सकता । जिस गतिसे है और वह ऐसा होता है कि तलवारके घावसे सर्वसाधारण प्रजाको किसी प्रकारकी हानि होती भी अधिक कसकता है। यह बात मैंने समाजके हो, उस गतिको रोकना ही धर्मका कार्य हैमैं उपदेशोंमें अनेक बार देखी है कि समाजी नहीं जानता कि असहिष्णुतासे कभी किसीको भाई जीभ पर काबू नहीं रखते। यह बात सबलाभ हुआ है । असहिष्णुतापूर्ण धर्मप्रचार मिश- को समझ लेनी चाहिए कि हम सत्यको कभी नरियोंका अनुकरण होकर मिशनरी-स्वरूपमें अस्वीकार नहीं कर सकते। • बदल जाता है और धर्मका कार्य केवल 'प्रचार ऋषिमुनियोंके स्वभावका विचार कीजिए करना' हो जाता है । प्रचारका यह ढंग मुसल- और उनके स्वभावका अध्ययन कीजिए। आमानों और क्रिश्चियनोंमें . है और आर्यसमाजने पको मालूम होगा कि वे केवल शान्तिसे,
लड़ाई-झगड़े
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चली हैं और
तो सच है कि वर्तमान पवन