Book Title: Jain Hiteshi 1920 01 02 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ अङ्क ५] विविध प्रसङ्ग। १४७ ४ षटपाहुड़ । श्रीकुन्दकुन्दाचार्यकृत मूल लिए जितनी सहायता मिल सके उतनी अपेप्राकृत और श्रुतसागरसूरिकृत संस्कृतटीका । क्षित है। धर्मात्माओं और दानियों का लक्ष्य , ५ मूलाचार । आचार्य वट्टकेरकृत मूल इसकी ओर निरन्तर रहना चाहिए। प्राकृत और आचार्य वसुनन्दिकृत संस्कृत १० सेठीजीका छुटकारा । आचारवृत्ति । ६ भाव-संग्रह । श्रीदेवसेनसूरिकृत प्राकृत . ___ समाचारपत्रोंके पाठक यह समाचार कभीके और पं० वामदेवकृत संस्कृत भावसंग्रह। __ पढ़ चुके होंगे कि आखिर सरकारने सुप्रसिद्ध पं० अर्जुनलालजी सेठी बी० ए० को छोड़ ७ नीतिवाक्यामृत । पं० सोमदेवकृत मूल दिया और बिना किसी शर्तके छोड़ दिया। और एक अज्ञातनामा विद्वानकृत संस्कृतटीका । अर्थात् जैसा कि पहले सुना गया था कि वे ८ रत्नकरण्डश्रावका चार। मूल और जयपुर न जा सकेंगे, व्याख्यान न दे सकेंगे, प्रभाचन्द्र भट्टारककृत टीकासहित । शिक्षकका काम न कर सकेंगे, आदि शतॊपर इनमेंसे कई ग्रन्थोंकी कापियाँ हो रही हैं। छोड़े जानेवाले हैं, सो बात अब न रही । अब बनी मानीपाचीन निजी वे अपनी इच्छानुसार चाहे जो कार्य कर सकेंगे श्यकता है । प्रत्येक ग्रन्थकी जब तक कई की और चाहे जहाँ जा सकेंगे। किसी ताहकी कैद प्रतियाँ न हों तबतक संशोधन और सम्पादन उनके लिए न रहेगी । सम्राट्की राजकीय घोषअच्छा नहीं हो सकता । इस लिए पाठकोंसे " " णाके अनुसार उन्हें यह मुक्ति मिली है, अतएव प्रार्थना है कि वे इनमें से जो जो ग्रन्थ जहाँ इस तरहकी आशा की भी गई थी कि अब वे जहाँ हो, उनको भेजने और भिजवाने की कला बिना किसी शर्तके ही छोड़े जावेंगे । सरकारकरें । ग्रन्थ सब सावधानीसे रक्खे जावेंगे और के इस कार्यके लिए हम उसे किसी प्रकारका काम हो जानेपर सुरक्षित लौटा दिये जायेंगे। धन्यवाद नहीं दे सकते। क्योंकि उसने राजउनके आने जानेका खर्च भी संस्थासे दिया कीय घोषणाके उपलक्ष्यमें केवल अपनी एक जायगा। भूलका संशोधन भर किया है । सेठीजीके साथ बिना किसी अपराधके वह जो अन्याय कर इन ग्रन्थोंके अतिरिक्त और भी कहीं कोई रही थी, उस अन्यायको ही उसने इस अवसर पर प्रकाशित करने योग्य ग्रन्थ हों तो पाठकोंको इतने समयके बाद, दूर किया है। यह बात उनकी सूचना भी हमें देते रहना चाहिए। दूसरी है कि हममेंसे बहुतसे लोग अपने एक । ग्रन्थमालाके लिए जो दस हजारका नया नर . निरापराधी भाईको, ५-६ वर्ष के लम्बे वियोचन्दा लिखा गया है, उसमें से अभी पाँच हजा- गक बाद पाकर, आर उसस प्रसन्न होकर, सररके लगभग ही वसल हआ है। जिन महाश- कारकी इस भूलसंशाधनको भी मोहवश उसकी योंके यहाँसे अभी तक चन्दा नहीं आया है कृपा समझ लेवें। उन्हें अब शीघ्र ही भेज देना चाहिए। ___ सेठीजी बहुत समयके बाद, अगणित कष्ट ग्रन्थमालाका काम इतना बड़ा है और इतने सहन करके, हमसे मिले हैं । हम उनका हृदयसे ग्रन्थ प्रकाशित करनेके लिए पड़े हुए हैं कि इसके स्वागत करते हैं और उन्हें विश्वास दिलाते हैं

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60