Book Title: Jain Digvijay Pataka Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 8
________________ [ च ] 'उधृत कर यह संग्रह प्रकाश मै लाया हूं। जो प्रमाण रहित वचन हो वे सर्वदा अमान्य होते हैं, प्रमाण युक्त वचन को मतांध पुरुष यद्यपि नहीं मानते, क्योंकि उन्हों के हृदय में मतांतरियों ने कुतर्क रूप जाल बिछा दिया है जैसे पित्त-ज्वर वाले को मिश्री भी कड़वी मालुम पड़ती है लेकिन मिश्री कदापि कड़वी नहीं है यह नीरोग पुरुष ही जानता है तैसे इस संग्रह ग्रंथ का ज्ञान समदृष्टि पुरुषों को माननीय होगा, जैसे भर्तृहरि राजा ने लिखा है : अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः । ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि तं नरं न रञ्जयति ॥ १ ॥ अर्थ- ज्ञानी को सुख से ज्ञान देने से शायद समझ भी सकता है, विशेष ज्ञानवंत तो न्याय वचन द्वारा शीघ्र ही समझता है और ज्ञानलव से दुर्विदग्ध ( अर्थात् अधजला ) मतांतरियों के कुज्ञान से उस पुरुष को ब्रह्मा भी ज्ञान देने में समर्थ नहीं होता । सर्वज्ञ सर्वदर्शी के विद्यमान समय में भी ३६३ पाषंडियों ने अपना हठवाद नहीं त्यागा था । २४में तीर्थंकर के निज शिष्य गोशाला तथा जमाली की कुमति दुर्गति में परिभ्रमण करने रूप आनुपूर्वी ने सत्य श्रद्धान का वमन करादिया था एव १ निन्हव आज तक जैन धर्म में प्रकट हो गये अन्य की तो बात ही क्या, क्योंकि जिन के बालपन से लशुन के गन्ध रूप, कुदेव, कुगुरु, कुशास्त्र रूप धर्म श्रद्धा हो रही है वे कदापि कस्तूरी की सुगंधि रूप सच्छास्त्र की ओर . लक्ष नहीं देते। कोई प्रेक्षावान् न्यायसंपन्न बुद्धिवाले जिन को संसार से शीघ्र मुक्ति होनी है ऐसे पुरुष ही इस ग्रन्थ को पढ़कर, सुनकर सत्यासत्य के परीक्षक होंगे । अपने मत की पोल न खुल जाय, इसलिए अपने बाड़ों के बच्चों को ऐसा भयसानरूप वचन सिखारखाहै कि हस्तिना पीड्यमानोऽपि न गच्छेज्जनमंदिरम् बस इस लकीर के फकीर तत्वज्ञान के अंधे कहते हैं कि हाथी से मरजाना लेकिन जैन मंदिर में नहीं जाना, कोई पूछे किस वेद में, किस स्मृति, भारत, रामायण या वसिष्ठ गीता आदि इतने आप लोगों के प्राचीन ग्रंथ हैं उन में किस शास्त्र का यह कथन है और नहीं जाना इस का कारण क्या ? और इस में कौन सा प्रमाण है । तब एक हिया शून्य ने कहा, जैन का देव मूर्ति नम है इस लिए नहीं जाना कहा है । (उत्तर) हे मतांध ! प्रथम तो जिनमूर्ति के -Page Navigation
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