Book Title: Jain Digvijay Pataka
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 22
________________ [ घ ] .... ६१. २४ दंडक गति भागति २१४ ६२. चक्रवर्ति का स्वरूप २१६ ६३. वासुदेव स्वरूप .. ... २४० ६४. जीव के अगली गति का बंध विचार २५१ ६५.. साधु बनने वाले दंभी को शिक्षा २५१ ६६. २० विश्वा दया, धर्मी गृहस्थ १। विश्वा दया पाल सकता है २५२ ६७. गृहस्थ धर्माचार भक्षाभक्ष .... .... .... २५३ ६८. शप्तनय, एकेकनय माही मतोत्पत्ति ३६३ पाखंड स्वरूप २६३ ६६. परमास्तिक छठवां जैनदर्शन स्वरूप ३६३ पाखंडी और षट्मत ही के एकांतपक्ष के ग्राहियों से भी पक्षवाले जैन दर्शन धर्म का दिग्विजय हुआ, ईश्वर कर्ता जगत् का इस पक्ष के मानने वाले सब से जैनधर्म का दिग्विजय हुआ २८१ ७०. शिवमत, बैष्णवमत विसंवाद . . .... ... २९७ ७१, महादेव परीक्षा हरि, हर, ब्रह्मा तीनों की १ मार्त नहीं, ज्ञान सम्यक्त्व, चारित्र, त्रिगुणात्मक अर्हत मूर्ति एक रूप है ३०१ ७२. लोक तत्व रागी, द्वेषी, हिंसक, कामी, लौकीकदेव के चरित्र । और वीतराग इनके चरित्र व मुर्ति को देख किनकी पूजा करें ३०७ ७३. द्विज निर्णय ..... .... .... .... १८ ७४. वेद स्मृति पुराणों में किंचित् जिन वचन .... . .... ३२६ ७५. नास्तिक शब्दार्थ, ईश्वर जगत् कर्ता नहीं महाजन (श्रावक) धर्म - मुक्तिदाता, भारत का प्रमाण, ग्रंथ प्रशस्तिः .... ३७१

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