Book Title: Jain Digvijay Pataka
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 89
________________ विष्णुमुनि ने बलि (नयुचि) को मारा। कहाँ जावे, तब बलस्तब्ध होकर बोला, ज्यादा मत बोलो, राज्य इस काल मंत्रालय का है, तेरे बिना बाकी साधुओं से कहदे 5 दिन के मध्य मेरा-राज्यम्याग दे, तूं राजा का भाई मेरे मानने योग्य है, तुझको 3 पद जगे रहने को देता हूं, बाकी साधु जो रह जायगा उसको चोरवत् प्राणों मे रहित करूंगा, वव विष्णुमुनि ने विचारा, ये साम वचन से माननेवाला नहीं, ये दुष्ट महापापी, साधुओं का परम द्वेषी है, इसकी जड़ ही उखाड़ डालनी चाहिये, कोप में आकर विष्णुमुनि क्रियपुलाकलब्धि से लाख योजन का रूप बनाया, एक डग मे तो भरत क्षेत्र मापा, दूसरी डग से पूर्व पश्चिम समुद्र मापा और बोला, तीजे कदम की भूमि दे, नमुचियस थर 2 कांपते के तीसरा कदम शिर पर धरा, सिंहासन से गिरा, पृथ्वी में दवादिया, नमुचिबल भी नरक में गया, तब इन्द्र के हुक्म से कोप शान्ति कराने देवता को आज्ञा दी, देवदेवांगना मधुर गीतादि कानों में मुनाने लगे, ब्रामण सत्र स्तुति प्रार्थना से प्राण दान मांगते, इस मंत्र को बाढ स्वर से बोल 2 रक्षा अपने 2 वर्ग के वांधने लगे। जैनराजा बलिमंत्री दानमंत्रो महाबलः। तेनमंत्रेण यत्नाले रक्ष 2 जिनेश्वरः / / 1 / / देवताओं की स्तुति से कोप शान्त मुनि होकर धीरे 2 अंग संकोच गुरु पास जाकर आलोचना करी, प्रायश्चित्त ले जप तप कर केवल ज्ञान पाके मोच गये, इस कथा को ब्राह्मणों ने विगाड़ कर और ही पुराणों में लिखली है, विष्णु भगवान् को क्या गरज थी, जो तुमारे मंतव्य मुजिन या करनेवाला धर्मी राबा बल के साथ छल करता, यह तो नि:केवल चुद्धिहीनों का काम है जो अपनी बेटियों से परस्त्रियों से विषय सेवन करा कहना, भगवान ने फूठ बोला, ओरों से बुलाया, चोरी करी, ओरों से शुसील भगवान् ने सेवन करा, छल से मारा, कपट करा, इत्यादि काम तो पापी अधमी के करने के है, परमेश्वर बीतगग सर्वज्ञ ऐसा काम कमी नहीं करता और ऐसा काम करे उसको परमेश्वर कभी नहीं मानना चाहिये। बीसमें और इक्रीमगे नार्थकर के अंगर में श्री भयोध्या सारनपुर

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